Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
View full book text
________________
रायपसेणइय सुत्तनो
सार
प्र०-गु ते यान-विमान, पने बाळसूर्य वगेरेनी आपेली उपमाओ जेवू ज खरेखर लालचोळ हतुं ?
उ.-ए अर्थ समर्थ नथी अर्थात् हे आयुष्मन् श्रमण ! ए तो मात्र उपमाओ छे, पण ते यान-विमान तो ए बधी उपमाओ करता क्यांय वधारे इष्टतर, सरस, मनोहर अने मनोश लाल वर्णवालु हतुं. तेनो गन्ध अने स्पर्श पण पूर्वोक्त मणिओनी पेठे घणो
। ४६-४८ सुगन्धी अने अतिशय सुंवाळो हतो.
यानविमान ए आभियोगिक देवोए पोताना स्वामी सूर्याभदेवनी आशा प्रमाणे पूर्वे वर्णवेलं एवं सुन्दर दिव्य यान-विमान सजधज कर्य अने उपर चडला एनी पूर्णाहुतिना समाचार तेमणे विनयपूर्वक सूर्याभदेवने जणावी तेनी आज्ञा तेने पाछी सोंपी.
सपरिवार [६] पोतानी धारणा प्रमाणे ए दिव्य यान विमाननी तैयारीना समाचार जाणी सूर्याभदेवने आनन्द थयो, हवे तेणे पोताना
सूर्याभदेवरूपने जिनेन्द्र पासे जवा जेवु योग्य कर्यु. मोटा परिवारवाळी पोतानी चार पट्टराणी अने गान्धर्वोर्नु तथा नाटककारो-नाटकीयाओनुं
नी भगवान मोटुं लश्कर ए बधा साथे ए सूर्याभदेवे ते दिव्य यान-विमाननी प्रदक्षिणा करी अने पछी पूर्व दिशाना सोपानद्वारा ते, ए यान
पासे जती विमान उपर चडी तेमां गोठवेला मुख्य सिंहासन उपर पूर्वाभिमुख थइने बेठो. पछी तेना चार हजार सामानिक देवो, ए यानविमाननी
१० स्वारीनु प्रदक्षिणा करी उत्तर दिशाना सोपानद्वारा एना उपर चड्या अने पूर्वे गोठवेलां पोतपोतानां आसनो उपर बेठा. तथा बीजा देवो अने
सविस्तर देवीओ पण यान-विमाननी प्रदक्षिणापूर्वक दक्षिण दिशाना सोपानद्वारा विमान उपर चडी पोतपोतानां जुदां जुदा आसनो उपर
वर्णन गोठवाई गया.
[१७] ए यानविमाननी सवारीमा सौथी प्रथम आगळ अष्टमंगल-आठ मंगळ-अनुक्रमे गोठवापलां हर्ता. सेमा पहेलो स्वस्तिक, ॥५३॥ बीजो श्रीवत्स, त्रीजो नन्दावर्त, चोथु वर्धमानक, पांच, भद्रासन, छट्ठो कळश, सात, मत्स्ययुगल अने आठ, दर्पण-पवी गोठवणी १५ हती. त्यार पछी पूर्ण कलश, भृङ्गार, दिव्य छत्र अने चामरो चालतां हतां. आ साथे गगनतलनो स्पर्श करती, अतिशय सुन्दर अने वायुथी फरफरती एक मोटी ऊंची विजयवैजयंती नामनी पताका चालती हती. त्यारपछी वैडूर्यना चकचकता दांडावाळु, माळाओथी
Jan Education
a l
For Private Personal use only
Nainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536