Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
View full book text
________________
रायसेनइय सुत्तनो
सार
Jain Education Interation
पटो-मोटी पडघमोट, ढक्काओ-डाकलीओ९, मोटी ढक्काओ - डाको१०, भेरीओ११ झालरो१२, दुंदुभीओ१३, सांकडमुखीओ१४, मोटा मादळो१५, मृदंगो१६, नंदीमृदंगो१७, आलिंगो१८, कुस्तुंबो १९, गोमुखीओ२०, नाना मादळो२१, त्रण तारनी वीणाओ२२, वीणाओ२३, भमरीवाळी वीणाओ२४ छ भमरीवाळी वीणाओ२५, सात तारनी वीणाओ २६, बब्बीसो२७, सुघोषा घंटाओ२८, नंदीघोषा घंटाओ२९, सो तारनी मोटी वीणाओ३०, काचयी वीणाओ ३१, चित्रवीणाओ३२, आमोदो३३, झांझो ३४, नकुलो३५, तूणो ३६, तुंबडावाळी वीण (ओ३७, मुकुंदो३८, हुडको३९, विचिक्कीओ४०, करटीओ४१, डिंडिमो४२, किणितो४३, कडवांओ४४, दर्दरो ४५, दर्दरिकाओ४६, कुस्तुंबुरुओ४७, ५ कलशीओ४८, कलशो४९, तालो५०, कांसाना तालो५१, रिंगिरिसिको५२, अंगरिकाओ५३, शिशुमारिकाओ५४, वांसना पावाओ५५, बालीओ५६, वेणुओ-वांसळीओ ७, परिल्लीओ५८, अने बद्धको५९, एम ओगणपचासे जातनां पकसो ने आठ आठ वाजांओ बनाव्यां अने पकसो ने आठ आठ ते दरेक वाजांने बगाडनारा बनाव्या.
[६०] पछी सूर्याभदेवे पोताना हाथमांथी सरजेला ते देवकुमाये अने देवकुमारीओने बोलाव्या, तेओए 'आवीने शी आशा छे?” एम विनयपूर्वक जणान्युं.
१०
[६१] तेमने सूर्याभि देवे कहां के "हे देवानुप्रियो ! तमे श्रमण भगवान महावीर पासे जाओ अने तेमने त्रण प्रदक्षिणा दई करी छे. जिज्ञासुओए ते ते वाद्योनी माहिती उस्ताद बगाडनाराओ पासेथी जाणी लेवी घटे.
७५ मूळ पाठमा वाजांओना भेदनी संख्या ओगणपचास जणावेली छे पण मूळ पाठ प्रमाणे वाजांओनी संख्या ओगणसाठ थाय छे. आ विवाद समाधान करवा टीकाकार कहे छे के ए ओगणपचास तो मूळभेदो समजवाना छे अने वधाराना तेना पेटा भेदो छे. ("एवमाइयाई एगूणपणं आउज्जविहाणाई बिउव्वर [कं० ५९] मूलभेदापेक्षया आतोषभेदा एकोनपञ्चाशत् शेषास्तु एतेषु एवं अन्तर्भवन्ति यथा १५ वंशातोयविधाने वाली - वेणु - परिली - बव्व (द्ध ? ) - गाः " - इति विवरण पृ० १२८ पं० ८)
For Private & Personal Use Only
५९ अनेक प्रकारनां वाजांओ
114811
www.janelibrary.org

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536