Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
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रायपसेण
[४०] ते मणिओनो रंग अने गंध जेवो उत्तम हतो तेवो ज तेमनो स्पर्श पण उत्तमोत्तम हतो. केम जाणे त्यां जमीन उपर कोमळ चामडुंज न पायु होय, रू ज न भरेलु होय, माखण ज न लगाडेलु होय, हंसगर्भना रूथी भरेली एबी तळाइओ ज न पाथरेली
४१ विमाः इय सुत्तनो
होय, सरसडांनां फूलोना जाणे ढगला ज न कर्या होय अने कोमळ कमळोनां पांदडां न वेरेला होय, पयो ते मणिओनो कोमळ को-|नमा रचला सार मळतर स्पर्श हतो.
| प्रेक्षागृहप्र०-शुं कोमळ स्पर्शवाळा ते मणिओ ए आपेली उपमाओ जेवा ज खरेखर कोमळ हता?
| मंडपर्नु ॥५०॥ ___ उ०-ए अर्थ समर्थ नथी अर्थात् हे आयुष्मन् श्रमण ! ए तो मात्र उपमाओ छे; पण ते कोमळ मणिओ तो ते वधी उपमाओ
वर्णन करता क्यांय वधारे इष्टतर, सरस, मनोहर अने मनोश कोमळ स्पर्शवाळा हता.
[१] त्यारपछी ते आभियोगिक देवोए पूर्ववणित दिव्य यान-विमाननी अंदर बराबर बच्चेना भागमा पक मोटा प्रेक्षागृहमंडपनी रचना करी. ए देवोए ए मंडपने अनेक स्तंभो उपर ऊभो कर्यो, उंची वेदिकाओ, तोरणो अने सुंदर पूतळीओथी सुशोभित बनाव्यो, पमा रमणीय घाटवाळां विमळ अने प्रशस्त वैडूर्यरत्नो जड्यां, ते मंडपना जुदा जुदा भागोमां बीजा पण अनेक प्रकारना मणिओ जडी तेने विशेष चळकतो बनान्यो, तेमां पूर्वोक्त बळद, घोडो. हाथी, मगर, नर, वनवेल वगेरेनां चित्रो कोर्या वा चीतां, सुवर्णमय अने रत्नमय अनेक स्तूपो ऊभा कर्या, अनेक प्रकारनी पंचरंगी घंटडीओ तथा पताकाओथी तेना शिखरने शणगायु, ए मंडप पटलो बधो चकचकतो हतो के जोनारने ते जाणे हलतो होय तेवो चपल जणातो, पाथी किरणोनी धारा छूटतो होय एम लागतुं, तेना-मंडपना-बधा भागो लीपीगुंपीने चकचकता अने संवाळा करेला हता, मंडपमां बहार अने अंदर रक्तचंदन वगेरे अनेक सुगंधी द्रव्योना थापा मारेला हता, ज्यां त्यां चंदनना कलशो गोठवेला हता, बारणाना टोडलाओ चंदनना कलशोथी शोभायमान एवां तोर
७२ मणिओ जेवो पाषाणमय पदार्थ सुंवाळामां सुंवाळो-अतिशय लीसो होइ शके खरो, पण ते, रू माखण के शिरीष जेवो नरम
होवान कहेवामा ए दिव्य मणिओनी अतिशय सुंबाळप बताववा मूळकारे उपरनी कंडिकामा ए वर्णन आपेलुं हशे. Jain Education lmalal
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