Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
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रायसेनइय सुत्तनो
सार
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उ०- ए अर्थ समर्थ नथी अर्थात् हे श्रमणायुष्मन् ! प तो मात्र उपमाओ हे; पण ते घोळा मणिओ तो ते बधी उपमाओ करतां क्यांय वधारे इष्टतर, सरस, मनोहर अने मनोश धोळा वर्णवाळा हता.
[३९] दिव्य यान- विमाननी अंदरना भूभागमां अनेक रंगवाळा चकचकित जे मणिओ जडेला हता ते मात्र देखावमां सुंदर हता पटलं ज नहि पण सुगंधी " पण हता. प मणिओमांथी पधी सरस सुगंध फेलाती के जाणे प भूभागम कोष्ठोनां, तगरनां, पलानां, सुगंधी चूआनां, चंपानां, दमणानां कुंकुमनां, चंदननां, सुगंधी वाळानां, मरवानां, जाइनां, जूइनां, मल्लिकानां, स्नानमल्लिकानां, केतकीनां, पाटलनां, नवमालिकानां, अगरमां, लवंगनां, कपूरनां वासकपूरनां पुटो-पडिआओ-अनुकूळ हवामां चारे बाजु गंध फेलाय प रीते खुल्लां पडेलां न होय, अथवा त्यां प सुगंधी द्रव्योमांनां खांडवा जेवां द्रव्यो खंडातां न होय, वेरातां न होय, एक वासणमांथी काढी बीजा वाणमां भरातां न होय, ए जातनी उदार, मनोश, मनहर अने घ्राणने तथा मनने शांति आपनारी सुगंध प भूभागमांथी चारे बाजु महेक्या करे छे-मघमध्या करे छे.
प्र० - शुं से सुगंधी मणिओ, प आपेली उपमाओ जेवा ज खरेखर सुगंधी हता ?
उ०- प अर्थ समर्थ नथी अर्थात् हे आयुष्मन् श्रमण ! प तो मात्र उपमाओ छे; पण ते सुगंधी मणिओ तो ते बधी उपमाओ करतां क्यांय वधारे इष्टतर, सरस, मनोहर अने मनोश सुगंधवाळा हता.
७१ हौरा पन्ना मोती के मणि वगेरे झवेरातना ऊंचामा ऊंचा पदार्थों सौ कोइने प्रत्यक्ष छे, तेम प्रकाश तेज चळकाट के अमुक खास प्रकारनो रंग वगेरे तो देखाय छे, परंतु तेमांना कोईमां कोई प्रकारनो उत्कट गंध होवानुं जाण्यं नथी. त्यारे देवसृष्टिना ए मणिओ धुमधु सुगंधी होय छे ए एक नवुं जाणवा जेवुं खरं. पृथ्वी गंधवती छे ए खरी बात, पण मणिओनो जेवो गंध अहीं वर्णवेलो छे तेवो उत्कटतम गंध, मानवीसृष्टिना कोइ पण स्थळमां नीपजेला के नीपजता मणिओमां जणातो नथी, ए ध्यानमा राखवा जेवुं छे.
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१०
॥४९॥
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