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रायपसेणइय सुतनो
सार
॥३८॥
कना सुगंधी धूपथी मधमधित करो अने प रीते ए भूमिने सर्व प्रकारे दिव्य करो-ज्यां उत्तम देव आवी शके एवी सुंदरमां सुंदर सुगंधीमां सुगंधी अने पवित्रमां पवित्र बनावो आम करी कारवीने पछी मने शीघ्र समाचार पण आपो. "
[१९] आभियोगिक देवोए 'श्रीमान देव जे कहे छे ते बराबर छे' पम कही सूर्याभदेवनी ए आशाने सहर्ष विनयपूर्वक हाथ जोडीने स्वीकारी अने पछी सेओ ईशानकोण तरफ जवा नीकळ्या. ईशानकोण तरफ जई वैक्रियसमुद्घात" वडे तेमणे संख्येय योत्यां सजीव पुष्पोनी दृष्टि नथी थती पण निर्जीवनी थाय छे. प्रस्तुत टीकाकारनी नजरमां तेमनो आ उत्तर पण बराबर नथी. टीकाकार कहे छे के समवसरणभूमिमा बेसवा आवता साधुओ कांइ लाकडानी पेठे हाल्या चाल्या विना बेसी ज रहे छे एम नथी, तेओ तो त्यां जावआव पण करे छे, एटले रस्तामां आवत सजीव पुष्पो कचरावानां अने दुःखी थवानां तेनुं शुं ? आ बधी हकीकत ध्यानमा लई प्रवचनसारोद्वारना टीकाकार एक तद्दन विलक्षण जवाब घडी काढे छे अने ते आ छेः समवसरण भूमिमां वरसेलां पुष्पो सजीव होय छे, ए वात खरी किंतु परमकारुणिक तीर्थंकर भगवाननो एवो प्रभाव छे के जेने लीधे ते पुष्पो कचरातां छताय लेश मात्र त्रास अनुभवता नथी, दलढुं जाणे ते पुष्पो अमृतरसथी सींचात होय एवो आनंद अनुभवे छे अंतमां टीकाकार कहे छे के अमारो आ उत्तर बधाय गीतार्थ पुरुषोने संमत छे." १० आ विशे अनुवादकनो विशेष कहेवानो अधिकार नथी.
६५ आ क्रियानुं वास्तविक स्वरूप समजातुं नथी. जैन सूत्रोमा आ विशे माहिती तो घणी मळे छे पण आ क्रिया अनुभव बहारनी थइ जवाथी ए माहिती शब्दस्पर्श उपरांत बीजं कशुं बतावी शकती नथी. योगीओ पोतानां शरीरमां धारे एवो फेरफार करी शके हो एम संभळाय छे, तेम देवा पण तेमने भ्यां ज्यां जवुं होय ते ते स्थानने योग्य पोतानां शरीरो बनाववामां आ क्रियानो उपयोग करे छे एम आगमबचन कहे छे. पातंजल योगशास्त्र प्रसिद्ध 'निर्माणकाय'नी क्रिया जेवी आ समुद्घातनी क्रिया लागे छे अने ते एक प्रकारनी शक्तिरूप १५ छे. आगम तो कहे छे के ते क्रिया मानवोमां पण संभवी शके छे पण तेने केम मेळवावी - सिद्ध करवी ए बाबत विशेष जणावेलुं नथी.
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१९ अभियोगिक देवो भक्तिपूर्वक भगवान पासे आव्या
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