Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । नास्ति ] किस ही एक प्रकार नास्तिरूप है. [ उभयं ] किस ही एक प्रकार अस्तिनास्ति रूप है. [ अवक्तव्यं ] किस ही एक प्रकार वचनगोचर नहीं है. [ पुनश्च ] फिर भी [तत त्रितयं ] वे ही आदिके तीनों भंग अवक्तव्यसे कहिये हैं. प्रथम ही-[स्यात् अस्ति अवक्तव्यं] किस ही एक प्रकार द्रव्य अस्तिरूप अवक्तव्य है. दूसरा भंग- स्यात् नास्ति अवक्तव्यं] किस ही एक प्रकार द्रव्य नास्तिरूप अवक्तव्य है और तीसरा भंग-[ स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्यं] किस ही एक प्रकार द्रव्य अस्ति नास्तिरूप अवक्तव्य है । ये सप्तभङ्ग द्रव्यका स्वरूप दिखानेकेलिये वीतरागदेवने कहे हैं । यही कथन विशेपताकर दिखाया जाता है। १. स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव इस अपने चतुष्टयकी अपेक्षा तो द्रव्य अस्तिस्वरूप है अर्थात् आपसा है ।। - २. परद्रव्य परक्षेत्र परकाल और परभाव इस परचतुष्टयकी अपेक्षा द्रव्य नास्ति स्वरूप है अर्थात् परसदृश नहीं है। .. ३. उपर्युक्त स्वचतुष्टय परचतुष्टयकी अपेक्षा द्रव्य क्रमसे तीन कालमें अपने भावनिकर अस्तिनास्तिस्वरूप है. अर्थात् आपसा है परसदृश नहीं है। ___१. और स्वचतुष्टयकी अपेक्षा द्रव्य एक ही काल वचनगोचर नहीं है, इस कारण अवक्तव्य है. अर्थात् कहनेमें नहीं आता। ५. और वही स्वचतुष्टयकी अपेक्षा और एक ही काल स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे द्रव्य अस्तिस्वरूप कहिये तथापि अवक्तव्य है। ६. और वही द्रव्य परचतुष्टयकी अपेक्षा और एक ही काल स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षा नास्ति स्वरूप है, तथापि कहा जाता नहीं । ७. और वही द्रव्य स्वचतुष्टयकी अपेक्षा और परचतुष्टयकी अपेक्षा और एक ही वार स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षा अस्तिनास्तिस्वरूप है तथापि अवक्तव्य है। इन सप्तभङ्गोंका विशेष स्वरूप जिनागमसे ( अन्यान्य जैनशास्त्रोंसे ) जान लेना. हमसे अल्पज्ञोंकी बुद्धिमें विशेष कुछ आता नहीं है । कुछ संक्षेप मात्र कहते हैं । जैसें कि-एक ही पुरुष पुत्रकी अपेक्षा पिता कहाता है और वही पुरुष अपने पिताकी अपेक्षा पुत्र कहलाता है और वही पुरुष मामाकी अपेक्षा भाणजा कहलाता है और भाणजेकी अपेक्षा मामा कहलाता है. स्त्रीकी अपेक्षा भरतार (पति ) कहलाता है. वहनकी अपेक्षा भाई भी कहलाता है. तथा वही पुरुष अपने वैरीकी अपेक्षा शत्रु कहलाता है और इप्टकी अपेक्षा मित्र भी कहलाता है. इत्यादि अनेक नातोंसे एक ही पुरुप कथंचित् अनेकप्रकार कहा जाता है. उसही प्रकार एक द्रव्य सप्तभङ्गकेद्वारा साधा जाता है ।

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