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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
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आत्मा [ज्ञानानि ] मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवल इन पांच प्रकारके ज्ञानोंमेंसे [ अनेकानि] दो तीन चार [भवन्ति ] होते हैं । भावार्थ - यद्यपि आत्मद्रव्य और ज्ञानगुणकी एकता है तथापि ज्ञानगुणके अनेक भेद करने में कोई विरोध वा दोष नहीं है क्योंकि द्रव्य कथंचित्मकार भेद अभेद स्वरूप है अनेकान्त के विना द्रव्यकी सिद्धि नहीं है [ तस्मात् तु ] तिस कारणसे [ ज्ञानीभिः ] जो अनेकांत विद्याके जानकार ज्ञानी जीवोंके द्वारा [द्रव्यं ] पदार्थ है सो [विश्वरूपं] अनेक प्रकारका [ भणितं ] कहा गया है [ इति ] इस प्रकार वस्तुका स्वरूप जानना ।
भावार्थ — यद्यपि द्रव्य अनन्तगुण अनन्तपर्यायके आधारसे एक वस्तु है तथापि वही द्रव्य अनेक प्रकार भी कहा जाता है । इससे यह बात सिद्ध भई कि अभेदसे आत्मा एक है अनेक ज्ञानके पर्यायभेदोंसें अनेक हैं ।
आगें जो सर्वथा प्रकार द्रव्यसे गुण भिन्न होंय और गुणोंसे द्रव्य भिन्न होय तो बडा दोष लगता है ऐसा कथन करते हैं ।
जदि हवदि दव्वमण्णं गुणदो य गुणा य दव्वदो अण्णे । दव्वाणंतियमधवा दव्वाभावं पकुव्वंति ॥ ४४ ॥
संस्कृतछाया.
यदि भवति द्रव्यमन्यद्गुणश्च गुणाश्च द्रव्यतोऽन्ये । द्रव्यानन्त्यमथवा द्रव्याभावं प्रकुर्व्वन्ति ॥ ४४ ॥
पदार्थ – [ ] और सर्वथा प्रकार [ यदि ] जो [ द्रव्यं ] अनेक गुणात्मक वस्तु है सो [गुणतः ] अंशरूपगुणसे [ अन्यत् ] प्रदेशभेदसे जुदा [ भवति ] होय (च) और [ द्रव्यतः ] अंशीस्वरूप द्रव्यसे [ गुणा: ] अंशरूप गुण [ अन्ये ] प्रदेशोंसे भिन्न होंहि तो [ द्रव्यानन्त्यं ] एक द्रव्यके अनन्तद्रव्य होय जांय । अथवा जो अनन्तद्रव्य नहिं होंय तो [ते] वे गुण जुदे हुये सन्ते [ द्रव्याभावं ] द्रव्यके अभावको [ प्रकुर्वन्ति ] करते हैं ।
भावार्थ - आचार्यैने भी गुणगुणी में कथंचित्प्रकार भेद दिखाया है। जो उनमें सर्वथा प्रकार भेद होंहि तौ एक द्रव्यके अनन्त भेद हो जाते हैं. सो दिखाया जाता है । गुण अंशरूप है गुणी अंशी है । अंशसे अंशी जुदा नहिं हो सक्ता. अंशीके आश्रय ही अंश रहते हैं और जो यों कहिये कि अंशसे अंशी जुदा होता है तो वे अंश आधारके विना किस अंशीके आश्रयसे रहै ? उसकेलिये अन्य कोई अंशी चाहिये कि जिसके आधार अंश रहैं । और जो कहो कि अन्य अंशी है उसके आधार रहते हैं तो उस अंशीसे भी अंश जुदे कहने होंगे । और यदि कहोगे कि उससे भी अंश जुदे हैं तो फिर अन्य अंशीकी कल्पना की जायगी. इसप्रकार कल्पना करनेसे गुणगुणीकी स्थिति नहिं होयगी. क्योंकि गुण अनन्त हैं जुदा कहनेसे द्रव्य भी अनन्त होंयगे सो एक दोष तो यह आवैगा.