Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् वाहीरूप जो प्रवृत्ति है तिसका नाम जिनमतमें [ समवायः ] समवाय है । भावार्थसंबंध दो प्रकारके हैं एक संयोगसंबंध है और एक समवायसंबंध है— जैसे जीवपुलका संबंध है सो तो संयोगसंबन्ध है । और समवायसम्बन्ध वहां कहिये जहाँ कि अनेक भावोंका एक अस्तित्व होय सकें. जैसें गुणगुणीमें सम्बन्ध है । गुणोंके नाश होनेसे गुणीका नाश और गुणीके नाश होनेसे गुणोंका नाश होय । इसप्रकार अनेक भावों का जहां सम्बन्ध होय उसीका नाम समवायसम्बन्ध कहा जाता है । [च अपृथग्भूतं ] और वही गुणगुणीका समवायसम्बन्ध प्रदेशभेदरहित जानना । यद्यपि संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनादिकसे गुणगुणीमें भेद है तथापि स्वरूपसे भेद नहीं हैं । जैसें सुवर्णके और पीतादि गुणके समवायसम्बन्ध में प्रदेशभेद नहीं है, इसीप्रकार गुणगुणीकी एकता है । [च] और [अयुतसिद्धत्वं] वही गुणगुणीका समवायसम्बन्ध मिलकर नहिं हुवा है अनादि सिद्ध एकही है [तस्मात् ] तिसकारणसे [ द्रव्यगुणानां ] गुणगुणी में वे समवाय सम्बन्ध [ अयुता सिद्धि: ] अनादिसिद्धि [इति ] इसप्रकार [निर्दिष्टा ] भगवंत देवने दिखाया है. ऐसा गुणगुणीविषै समवायसम्बन्ध जानना । ४४ आगे दृष्टांतसहित गुणगुणीकी एकताका कथन संक्षेपसे करते हैं. वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा बिसेसा हि । दव्वादो य अणण्णा अण्णत्तपगासगा होति ॥ ५१ ॥ दंसणणाणाणि तहा जीवणिवद्धाणि णण्णभूदाणि । ववदेसदो पुधत्तं कुव्वंति हि णो सभावादो ॥ ५२ ॥ संस्कृतछाया. वर्णरसगन्धस्पर्शाः परमाणुप्ररूपिता विशेषा हि । द्रव्यतश्च अनन्याः अन्यत्वप्रकाशका भवन्ति ॥ ५१ ॥ दर्शनज्ञाने तथा जीवनिबद्धे अनन्यभूते । व्यपदेशतः पृथक्त्वं कुरुते हि नो स्वभावात् ॥ ५२ ॥ पदार्थ - [हि ] निश्चयसे [ परमाणुप्ररूपिताः ] परमाणुवों मे कहे जे [वर्णरसगं - स्पर्शाः] वर्णरसगंधस्पर्श ऐसे चार [ विशेषाः ] गुणोंसे [ द्रव्यतः अनन्याः ] पुद्गलद्रव्यसे पृथक नहीं है. - भावार्थ - निश्चय नयकी अपेक्षा वर्ण रस गन्ध स्पर्श ये चार गुण समवायसंबंध से पुद्गलद्रव्यसे जुदे नहीं है [च] और ये ही चारों वर्णादिकगुण [ अन्यत्वप्रकाशकाः भवन्ति ] व्यवहारकी अपेक्षा पुद्गलद्रव्यसे पृथकताको भी प्रगट करता है । भावार्थ-यद्यपि ये वर्णादिक गुण निश्चयकरके पुद्गलसे एक हैं तथापि - व्यवहारनयकी अपेक्षा संज्ञा भेदकर भेद भी कहा जाता है. प्रदेशभेदसे भेद नहीं है । [ तथा ] और जैसें पुद्गलद्रव्यसे वर्णादिक गुण अभिन्न है. तैसें ही निश्चय नयसे [ जीवनिवळे ] जीव

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