Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । पदार्थ-[लोके ] इस लोकमें [यथा] जैसें [उदकं ] जल [मत्स्यानां] मच्छियोंको [गमनानुग्रहकरं] गमनके उपकारको निमित्तमात्रसहाय [भवति ] होता है [तथा] तैसें ही [जीवपुद्गलानां] जीव और पुद्गलोंके गमनको सहाय [धर्मद्रव्यं ] धर्म नामा द्रव्य [विजानीहि ] जानना । भावार्थ-जैसें जल मच्छियोंके गमन करते समय न तो आप उनके साथ चलता है और न मच्छियोंको चला है किन्तु उनके गमनको निमित्तमात्र सहायक है, ऐसा ही कोई एक खभाव है । मच्छियां जो जलके विना चलनेमें असमर्थ हैं इस कारण जल निमित्तमात्र है । इसी प्रकार ही जीव और पुद्गल धर्मद्रव्यके विना गमन करनेको असमर्थ हैं जीव पुद्गलके चलते धर्मद्रव्य आप नहिं चलता और न उनको प्रेरणा करके चलाता है. आप तो उदासीन है परन्तु कोई एक ऐसा ही अनादिनिधनस्वभाव है कि जीव पुद्गल गमन करे तो उनको निमित्तमात्र सहायक होता है । आगे अधर्मद्रव्यका स्वरूप दिखाया जाता है। जह हवदि धम्मव्वं तह तं जाणेह वमधमक्खं । ठिदि किरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव ॥ ८६ ॥ संस्कृतछाया. यथा भवति धर्मद्रव्यं तथा तज्जानीहि द्रव्यमधर्माख्यं । स्थितिक्रियायुक्तानां कारणभूतं तु पृथिवीव ।। ८६ ।। पदार्थ-यथा] जैसें [तत् ] जिसका स्वरूप पहिले कह आये वह [धर्मद्रव्यं ] धर्मद्रव्य [भवति ] होता है [तथा] तैसें ही [अधर्माख्यं] अधर्म नामक [द्रव्यं] द्रव्य [स्थितिक्रिया युक्तानां] स्थिर होनेकी क्रियायुक्त जीव पुद्गलोंको [पृथिवी इव] पृथिवीकी समान सहकारी [कारणभूतं ] कारण [जानीहि ] जान ।। भावार्थ-जैसे भूमि अपने स्वभावहीसे अपनी अवस्थालिये पहिले ही तिष्ठै है स्थिर हैं और घोटकादि पदार्थोंको जोरावरी नहिं ठहराती. घोटकादि जो स्वयं ही ठहरना चाहै तो पृथिवी सहज अपनी उदासीन अवस्थासे निमित्तमात्र स्थितिको सहायक है। इसीप्रकार अधर्मद्रव्य जो है सो अपनी साहजिक अवस्थासे अपने असंख्यात प्रदेश लिये लोकाकाश प्रमाणतासे अविनाशी अनादि कालसे तिष्ठै है, उसका स्वभाव भी जीव पुद्गलकी स्थिरताको निमित्तमात्र कारण है, परन्तु अन्य द्रव्यको जबरदस्तीसे नहिं ठहराता । आपहीसे जो जीवपुद्गल स्थिर अवस्थारूप परिणमै तो आप अपनी स्वाभाविक उदासीन अवस्थासे निमित्तमात्र सहाय होता है । जैसैं धर्मद्रव्य निमित्तमात्र गतिको सहायक है उसी प्रकार अधर्मद्रव्य स्थिरताको सहकारी कारण जानना । यह संक्षेप मात्र धर्म अधर्म द्रव्यका स्वरूप कहा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157