Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ ११८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् प्रतीति श्रद्धा उपजती है, ऐसे परसमयरूप प्रशस्त रागको छोड नहि शक्ता । जैसे रूई धुनने हारा पुरुष (धुनिया) रुई धुनते धुनते पीजनीमें जो लगी हुई रूई है उसको दूरकरनेके भय संयुक्त है. तैसें राग दूर नहिं होता. इसकारण ही साक्षात् मोक्षपदको नहिं पाता । जब ऐसा है तो उसकी गति किसप्रकार होती है ? प्रथम ही तो देवादि गतियोंमें संक्लेश प्राप्तिकी परंपराय होती है, तत्पश्चात् मोक्षपदको प्राप्त होता है क्योंकि परंपराय इस सूक्ष्मपर समयसे भी मोक्ष सधती है । . आगें फिर भी अरहन्तादिक पंचपरमेष्ठीमें भक्तिस्वरूप जो प्रशस्त राग है उससे मोक्षका अन्तराय दिखाते हैं। अरहंतसिडचेदियपचयणभत्तो परेण णियमेण । जो कुणदि तवो कम्मं सो सुरलोगं समादियादि ॥ १७१ ॥ संस्कृतछाया. ___अर्हत्सिद्धचैत्यप्रवचनभक्तः परेण नियमेन । यः करोति तपःकर्म स सुरलोकं समादत्ते ॥ १७१ ॥ पदार्थ-[य] जो पुरुष [अर्हत्सिद्धचैत्यप्रवचनभक्तः] अरहन्त सिद्ध जिन विब और शास्त्रोंमें जो भक्तिभावसंयुक्त [परेण नियमेन] उत्कृष्ट संयमके साथ [तपःकर्म] तपस्यारूप करतूतिको [करोति ] करता है [सः] वह पुरुष [सुरलोकं] स्वर्गलोकको ही [समादत्ते] अंगीकार करता है। भावार्थ-जो पुरुष निश्चयकरके अरहन्तादिककी भक्तिमें सावधानबुद्धि करता है और उत्कृष्ट इन्द्रियदमनसे शोभायमान परमप्रधान अतिशय तीव्रतपस्या करता है सो पुरुष उतना ही अरहन्तादिक तपरूप प्रशस्तरागमात्र क्लेशकलंकित अन्तरंगभावोंसे भावितचित्त होकर साक्षात् मोक्षको नहिं पाता किन्तु मोक्षका अन्तराय करन हारे स्वर्गलोकको प्राप्त होते हैं. उस वर्गमें वही जीव सर्वथा अध्यात्म रसके अभावसे इन्द्रियविषयरूप विषवृक्षकी वासनासे मोहित चित्तवृत्तिको धरता हुवा बहुत कालपर्यन्त सरागभावरूप अंगारोंसे दह्यमान हुवा बहुत ही खेदखिन्न होता है। आगें साक्षात् मोक्षमार्गका सार दिखानेकेलिये इस शास्त्रका तात्पर्य्य संक्षेपतासे दिखाते हैं। तमा णिव्वुदिकामो रागं सवत्थ कुणदि मा किंचि । सो तेण वीदागो भविओ भवसायरं तरदि ॥ १७२॥ संस्कृतछाया. तस्मान्निवृत्तिकामो रागं सर्वत्र करोतु मा किञ्चित् । स तेन वीतरागो भव्यो भवसागरं तरति ॥ १७२ ।। पदार्थ-[तस्मात् ] जिस्से कि राग भावों कर स्वर्गादि सांसारिक सुख उत्पन्न होते है तिसकारणसे [निवृत्तिकामः ] मुक्त होनेका इच्छुक [सर्वत्र ] सब जगहँ अर्थात्

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157