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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् द्रव्य पुण्य होता है । इसीप्रकार अशुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षा जीव की है अशुभ परिणाम कर्म है उसका निमित्त पाकर द्रव्यपाप होता है इसलिये प्रथम ही भावपाप होता है तत्पश्चात् द्रव्यपाप होता है । और निश्चयनयकी अपेक्षा पुद्गल कर्ता है शुभप्रकृति परिणमनरूप द्रव्यपुण्यकर्म है । सो जीवके शुभपरिणामका निमित्त पाकर उपजता है। और निश्चयनयसे पुद्गलद्रव्य कर्ता है । अशुभप्रकृति परिणमनरूप द्रव्यपापकर्म है सो आत्माके ही अशुभ परिणामोंका निमित्त पाकर उत्पन्न होता है । भावित पुण्यपापका उपादान कारण आत्मा है, द्रव्य पापपुण्यवर्गणा निमित्तमात्र है । द्रव्यत पुण्यपापका उपादान कारण पुद्गल है. जीवके शुभाशुभ परिणाम निमित्तमात्र हैं । इसप्रकार आत्माके निश्चय नयसे भावितपुण्यपाप अमूर्तीक कर्म हैं और व्यवहारनयसे द्रव्यपुण्यपाप मूर्तीक कर्म हैं। आगे मूर्तीक कर्मका स्वरूप दिखाते हैं
जह्मा कम्मरस फलं विसयं फासेहिं भुंजदे नियदं । जीवेण सुहं दुक्खं तमा कम्माणि मुत्ताणि ॥ १३३ ।।
संस्कृतछाया. यस्मात्कर्मणः फलं विषयः स्पर्शेर्भुज्यते नियतं ।
जीवेन सुखं दुःखं तस्मात्कर्माणि मूर्त्तानि ॥ १३३ ।। ‘पदार्थ-[यस्मात् ] जिस कारणसे [कर्मणः] ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मोंका [सुखं । दुःखं] सुखदुखरूप [फलं] रस सो ही हुवा [विषयः] सुखदुःखका उपजानेहारा इष्टअनिष्टरूप मूर्तपदार्थ सो [स्पर्शः] मूर्तीक इन्द्रियोंसे [नियतं] निश्चयकरकें [जीवेन] आत्माद्वारा [भुज्यते] भोगा जाता है [तस्मात् ] तिसकारणसे [कर्माणि] ज्ञानावरणा दिकर्म [ मूर्त्तानि ] मूर्तीक हैं।
भावार्थ-कर्मोंका फल इष्ट अनिष्ट पदार्थ है सो मूर्तीक है इसीसे मूर्तीक म्पर्शादि इन्द्रियोंसे जीव भोगता है । इसकारण यह वात सिद्ध भई कि कर्म मूर्तीक हैं अर्थात् ऐसा अनुमान होता है क्योंकि जिसका फल मूर्तीक होता है उसका कारण भी मूर्तीक होता है सो कर्म मूर्तीक हैं. मूर्तीक कर्मके सम्बन्धसे ही मूर्तफल अनुभवन किया जाता है । जैसे चूहेका विष मूर्तीक है सो मूर्तीक शरीरसे ही अनुभवन किया जाता है । ___ आगें मूर्तीक कर्मका और अमूर्तीक जीवका बंध किसप्रकार होता है सो सूचनामात्र कथन करते हैं।
भुत्ति फासदि मुत्तं मुत्तो मुत्तेण वंधमणुवदि। जीवो मुत्तिविरहिंदो गादि ते तेहिं उग्गहदि ॥ १३४ ॥