Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् द्वारा किया होय तो [ आत्मा] जीव [ कर्मणः ] भावकर्मका [कथं ] कैस [कर्ता] करनेहारा [ भवति ] होता है । भावार्थ-जो सर्वथा द्रव्यकर्मको औदयिकादि भावोंका कर्ता कहा जाय तो आत्मा अकर्ता होकर संसारका अभाव होय और जो कहा जाय कि आत्मा द्रव्यकर्मका कर्ता है. इस कारण संसारका अभाव नहीं है तो द्रव्यकर्म पुद्गलका परिणाम है. उसको आत्मा कैसें करैगा ? क्योंकि [आत्मा ] जीवद्रव्य जो है सो [स्वकं भावं ] अपने भावकर्मको [ मुक्त्वा ] छोडकर [ अन्यत् ] अन्य [ किचित् अपि ] कुछ भी परद्रव्यसंबंधी भावको [ न करोति ] नहिं करता है ।
भावार्थ-सिद्धान्तमें कार्यकी उत्पत्तिकेलिये दो कारण कहे हैं । एक 'उपादान' और एक 'निमित्त' । द्रव्यकी शक्तिका नाम उपादान है. सहकारी कारणका नाम निमित्त है। जैसें घटकार्यकी उत्पत्तिकेलिये मृत्तिकाकी शक्ति तो उपादान कारण है और कुंभकार दंडचक्रादि निमित्त कारण हैं । इससे निश्चय करकें मृत्तिका (मट्टी) घटकार्यकी कर्ता है. व्यवहारसे कुंभकार कर्ता है. क्योंकि निश्चय करकें तो कुंभकार अपने चेतनमयी घटाकार परिणामोंका ही कर्ता है. व्यवहारसे घट कुंभकारके परिणामोंका कर्ता है. जहां उपादानकारण है, तहां निश्चय नय है और जहां निमित्तकारण है वहां व्यवहार नय है । और जो यों कहा जाय कि चेतनात्मक घटाकार परिणामोंका का सर्वथा प्रकार निश्चय नयकर घट ही है कुंभकार नहीं है तो अचेतन घट चेतनात्मक घटाकार परिणामोंका की कैसे होय ? चैतन्यद्रव्य अचेतन परिणामोंका की होय अचेतनद्रव्य चैतन्यपरिणामोंका कर्ता नहिं होता । तैसें ही आत्मा और कर्मों में उपादान निमित्तका कथन जानना । इस कारण शिष्यने जो यह प्रश्न किया था कि जो सर्वथा प्रकार द्रव्यकर्म ही भावकर्मोंका कर्ता, माना जाय तो आत्मा अकर्ता हो जाय. द्रव्यकर्मको करनेकेलिये फिर निमित्त कौन होगा? इस कारण आत्माके भावकर्मोंका निमित्त पाकर द्रव्यकर्म होता है. द्रव्यकर्मसे संसार होता है. आत्मा द्रव्यकर्मका कर्ता नहीं है. क्योंकि अपने भावकर्मके विना और परिणामोंका कर्ता आत्मा कदापि नहिं होता। आगें शिष्यके इस प्रश्नका उत्तर कहा जाता है।
भावो कम्मणिमित्तो कम्मं पुण भावकारणं हवदि । ण दु तेसिं खलु कत्ता ण विणा भूदा दु कत्तारं ॥ ६० ॥
संस्कृतछाया. भावः कर्मनिमित्तः कर्म पुनर्भावकारणं भवति ।
न तु तेपां खलु कर्त्ता न विना भूतास्तु कर्तारं ॥ ६० ॥ ___ पदार्थ-[भावः] औदयिकादि भाव [कर्मनिमित्तः] कर्मके निमित्तपाकर होते हैं [पुनः] फिर [कर्म ] ज्ञानावरणादिक द्रव्यकर्म जो है सो [भावकारगं] औदयि

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