Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 25
________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । २३ भूत वर्त्तना लक्षण हो जैसें आकाश धर्म अधर्म इनके विशेषगुण अन्यद्रव्योंको अवकाश, गमन, स्थानको सहाय देना है. तैसें ही कालद्रव्य अन्य द्रव्योंके परिणमावनेको सहाय है । और उपादान अपनी परिणतिको आप ही सब द्रव्य हैं । उपादान एक द्रव्यको अन्य द्रव्य नहिं होता । कथंचित्प्रकारनिमित्तकारण अन्य द्रव्यको अन्य पदार्थ होता है. अवकाश गति स्थिति परणतिको आकाश आदिक द्रव्य कहे हैं. और जो अन्य द्रव्य निमित्त न माना जाय तो जीव और पुल दो ही द्रव्य रह जाय. ऐसा होनेसे आगम विरोध होय और लोकमर्यादा न रहै, लोक षड्द्रव्यमयी है, यह सब कथन निश्चय कालका जानना - अब व्यवहारकालका वर्णन किया जाता है. समओ णिमिसो कट्ठा कला य णाली तदो दिवारती । मासोदुअयण संवच्छरोत्ति कालो परायत्तो ॥ २५ ॥ संस्कृतछाया. समयो निमिपः काष्टा कला च नाली ततो दिवारात्रं । मासर्व्वयनसंवत्सरमिति कालः परायत्तः ॥ २५ ॥ पदार्थ–[कालः इति ] यह व्यवहार काल [परायत्तः ] यद्यपि निश्चयकालकी सम कहा जाता है । अन्यके सो ही दिखाया जाता चाल जितने में होय निमिष है. असंख्यात पंद्रह निमिष मिलै तो पर्याय है तथापि जीव पुद्गल के नवजीर्णरूप परिणामसे उत्पन्न हुवा द्वारा कालकी पर्यायका परिमाण किया जाता है, तातें पराधीन है. है. [ समयः ] मंदगतिसे परिणया जो परमाणु तिसकी अतिसूक्ष्म सो समय है [ निमिषः ] जितनेमें नेत्रकी पलक खुले उसका नाम समय जब चीतते हैं, तब एक निमिष होता है. और [ काष्टा ] एक काष्टा होय । [च] और [कला ] जो वीस काष्टा होय तो एक कला होती है । और [नाली ] कहिये कुछ अधिक जो वीस कला बीतै तो एक नाली वा घड़ी होती है. सो जलकटोरी घड़ियाल आदिकसे जानी जाती है। जो दोय घड़ी होय तो मुहर्त होय । जो तीस महूरत बीत जाय तो एक दिनरात्रि होता है, सो सूर्यकी गतिसे जाना जाता है | और [मासर्त्वयनसंवत्सरं ] तीस दिनका महीना, दो महीनेका ऋतु, तीन ऋतुका अयन, दो अयनका एक वर्ष होता है और जहांतांई वर्ष गिने जांय, तहांतांई संख्यातकाल कहा जाता है । इसके उपरान्त पल्य सागर आदिक असंख्यात वा अनंतकाल जानना । यह व्यवहारकाल इसी प्रकार द्रव्यके परिणमनकी मर्यादासे गण लिया जाता है. मूलपर्याय निश्चयकाल हैं । सबसे सूक्ष्म 'समय' नामा कालकी पर्याय है. अन्य सब स्थूलकालके पर्याय हैं । समयके अतिरिक्त अन्य कालका सूक्ष्म भेद कोई नहीं है । परद्रव्यके परिणमन विना व्यवहारकालकी मर्यादा नहिं कही जाती. इस कारण यह पराधीन है । निश्चयकाल स्वाधीन है ।

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