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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। गतिरूप कार्य नहीं होता । सिद्धके अशुद्ध' परिणति सर्वथा नष्ट होगई है. सो अपने शुद्ध स्वरूपको ही उपजाते हैं । और कुछ भी नहिं उपजाते । ____ आगे कइयक बौद्धमती जीवका सर्वथा अभाव होना उसको ही मोक्ष कहते हैं, तिनका निषेध करते हैं।
सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च । विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुजदि असदि सम्भावे ॥३७॥
संस्कृतछाया. शास्वतमथोच्छेदो भव्यमभव्यं च शून्यमितरच ।।
विज्ञानमविज्ञानं नापि युज्यते असति सद्भावे ।। ३७ ॥ पदार्थ-[ सद्भावे ] मोक्षावस्थामें शुद्ध सत्तामात्र जीव वस्तुके [ असति ] अभाव होते सते [ शास्वतं ] जीव द्रव्यस्वरूप करके अविनाशी है ऐसा कथन [न युज्यते ] नहीं संभवता. जो मोक्षमें जीव ही नहीं तो शास्वता कौन होगा ? [ अथ ] और [उच्छेदः ] नित्य जीवद्रव्यके समयसमयविषै पर्यायकी अपेक्षासे नाश होता है.. यह भी कथन वनैगा नहीं । जो मोक्षमें वस्तु ही नहीं है तो नाश किसका कहा जाय (च) और [ भव्यं ] समय समयमें शुद्ध भावोंके परिणमनका होना सो भव्य भाव है [अभव्यं] जो अशुद्ध भाव विनष्ट हुये तिनका जो अन होना सो अभव्यभाव कहाता है. ये दोनों प्रकारके भव्य अभव्य भाव जो मुक्तमें जीव नहिं होय तो किसके होय ? [च ] तथा [शून्यं ] परद्रव्यस्वरूपसे जीवद्रव्यरहित है. इसको शून्यभाव कहते हैं [इतरं ] अपने
स्वरूपसे पूर्ण है इसको अशून्यभाव कहते हैं जो मोक्षमें वस्तुही नही है तो ये दोनों __ भाव किसके कहे जायंगे ? [च ] और [विज्ञानं ] यथार्थ पदार्थका जानना [ अविज्ञानं ]
औरका और जानना । ज्ञान अज्ञान दोनों प्रकारके भाव यदि मोक्षमें जीव नहिं होय तो कहे नहिं जांय-क्योंकि किसी जीवमें ज्ञान अनंत है किसी जीवमें ज्ञान सान्त है । किसी जीवमें अज्ञान अनंत है किसी जीवमें अज्ञान सान्त है । शुद्ध जीव द्रव्यमें केवल ज्ञानकी अपेक्षा अनन्त ज्ञान है सम्यग्दृष्टी जीवके क्षयोपशम ज्ञानकी अपेक्षा सान्त ज्ञान है । अभव्य मिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा अनन्त अज्ञान है. भव्यमिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा सान्त अज्ञान है । सिद्धोंमें समस्त त्रिकालवर्ती पदार्थोंके जाननेरूप ज्ञान हैं, इस कारण ज्ञानभाव कहा जाता है और कथंचित्प्रकार अज्ञान भाव भी कहा जाता है । क्योंकि क्षायोपशमिक ज्ञानका सिद्धमें अभाव है । इसलिये विनाशीक ज्ञानीकी अपेक्षा अज्ञान भाव जानना । यह दोनों प्रकारके ज्ञान अज्ञान भाव जो मोक्षमें जीवका अभाव होय तो नहिं वन सक्ते ?
भावार्थ-जे अज्ञानी जीव मोक्ष अवस्थामें जीवका नाश मानते हैं उनको समझानेके लिये आठ भाव हैं इन आठ भावोंसे ही मोक्षमें जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है। और