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________________ ३३ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। गतिरूप कार्य नहीं होता । सिद्धके अशुद्ध' परिणति सर्वथा नष्ट होगई है. सो अपने शुद्ध स्वरूपको ही उपजाते हैं । और कुछ भी नहिं उपजाते । ____ आगे कइयक बौद्धमती जीवका सर्वथा अभाव होना उसको ही मोक्ष कहते हैं, तिनका निषेध करते हैं। सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च । विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुजदि असदि सम्भावे ॥३७॥ संस्कृतछाया. शास्वतमथोच्छेदो भव्यमभव्यं च शून्यमितरच ।। विज्ञानमविज्ञानं नापि युज्यते असति सद्भावे ।। ३७ ॥ पदार्थ-[ सद्भावे ] मोक्षावस्थामें शुद्ध सत्तामात्र जीव वस्तुके [ असति ] अभाव होते सते [ शास्वतं ] जीव द्रव्यस्वरूप करके अविनाशी है ऐसा कथन [न युज्यते ] नहीं संभवता. जो मोक्षमें जीव ही नहीं तो शास्वता कौन होगा ? [ अथ ] और [उच्छेदः ] नित्य जीवद्रव्यके समयसमयविषै पर्यायकी अपेक्षासे नाश होता है.. यह भी कथन वनैगा नहीं । जो मोक्षमें वस्तु ही नहीं है तो नाश किसका कहा जाय (च) और [ भव्यं ] समय समयमें शुद्ध भावोंके परिणमनका होना सो भव्य भाव है [अभव्यं] जो अशुद्ध भाव विनष्ट हुये तिनका जो अन होना सो अभव्यभाव कहाता है. ये दोनों प्रकारके भव्य अभव्य भाव जो मुक्तमें जीव नहिं होय तो किसके होय ? [च ] तथा [शून्यं ] परद्रव्यस्वरूपसे जीवद्रव्यरहित है. इसको शून्यभाव कहते हैं [इतरं ] अपने स्वरूपसे पूर्ण है इसको अशून्यभाव कहते हैं जो मोक्षमें वस्तुही नही है तो ये दोनों __ भाव किसके कहे जायंगे ? [च ] और [विज्ञानं ] यथार्थ पदार्थका जानना [ अविज्ञानं ] औरका और जानना । ज्ञान अज्ञान दोनों प्रकारके भाव यदि मोक्षमें जीव नहिं होय तो कहे नहिं जांय-क्योंकि किसी जीवमें ज्ञान अनंत है किसी जीवमें ज्ञान सान्त है । किसी जीवमें अज्ञान अनंत है किसी जीवमें अज्ञान सान्त है । शुद्ध जीव द्रव्यमें केवल ज्ञानकी अपेक्षा अनन्त ज्ञान है सम्यग्दृष्टी जीवके क्षयोपशम ज्ञानकी अपेक्षा सान्त ज्ञान है । अभव्य मिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा अनन्त अज्ञान है. भव्यमिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा सान्त अज्ञान है । सिद्धोंमें समस्त त्रिकालवर्ती पदार्थोंके जाननेरूप ज्ञान हैं, इस कारण ज्ञानभाव कहा जाता है और कथंचित्प्रकार अज्ञान भाव भी कहा जाता है । क्योंकि क्षायोपशमिक ज्ञानका सिद्धमें अभाव है । इसलिये विनाशीक ज्ञानीकी अपेक्षा अज्ञान भाव जानना । यह दोनों प्रकारके ज्ञान अज्ञान भाव जो मोक्षमें जीवका अभाव होय तो नहिं वन सक्ते ? भावार्थ-जे अज्ञानी जीव मोक्ष अवस्थामें जीवका नाश मानते हैं उनको समझानेके लिये आठ भाव हैं इन आठ भावोंसे ही मोक्षमें जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है। और
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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