Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 16
________________ [ पन्द्रह "प्राकृत-साहित्य को खास जगह देने की जरूरत है। उसके लिए दो सौ पृष्ठ दिये जाये तो अच्छा है, क्योकि प्राकृत-साहित्य के विषय में हिन्दी-जगत् को अभी बहुत-कुछ परिचय देने की आवश्यकता है। भविसमत्त कहा, समराइच्च कहा, पाउमचर्य कहा सदृश प्राकृत-ग्रन्थो के परिचय देने वाले आधे दर्जन लेख रहे । बीस पृष्ठो में जैनप्राकृत-साहित्य के प्रमुख नथो की प्रकाशित और अप्रकाशित एक तालिका ऐतिहासिक तिथि-क्रम के अनुसार दे दी जाय तो बहुत लाभप्रद होगी। भाषा-विज्ञान-विभाग में पाली, प्राकृत और अपभ्रश की परम्परा द्वारा हिन्दी भाषा का स्वरूप किस प्रकार विकसित हुआ है, इसी पर दो-तीन लेखो में ध्यान केन्द्रित किया जाय तो सामयिक उपयोग की वस्तु होगी। इस विभाग के लिए साठ पृष्ठ और 'कला-विभाग के लिए चालीस पृष्ठ पर्याप्त है। कला के अन्तर्गत अपभ्रश कालीन चित्रकला पर एक लेख और दूसरा शिल्प-साहित्य के विषय-परिचय के बारे में हो। मथुरा, देवगढ और आबू की शिल्प सामग्री के परिचयात्मक लेख भी हो सकते है। 'पुरातत्त्व-विभाग' में पचास पृष्ठ और दो लेख रहेंगे। "हिन्दी-साहित्य (गद्य) और 'हिन्दी-काव्य के लिए सौ-सौ पृष्ठ पर्याप्त समझता हूँ। हिन्दी-साहित्यविभाग में पुरानी हिन्दी के काल की साहित्यिक कृतियो और धार्मिक प्रवृत्तियो का परिचय विशद रूप से हो, जो श्री हजारीप्रसाद जी द्विवेदी का मुख्य अध्ययन-विषय है और जिसके सम्बन्ध में हिन्दी-जगत् का ज्ञान अभी अधूरा है। जायसी पर भी एक लेख हो तो अच्छा है। 'हिन्दी-काव्य' के अन्तर्गत नवीन कृतियो के प्रकाशन की अपेक्षा प्राचीन हिन्दी, मैथिली, राजस्थानी आदि के काव्यो का प्रकाशन अच्छा होगा। विद्यापति और हिन्दी में रासो-साहित्य पर भी दो लेख रह सकते है। ""जैन-साहित्य-विभाग के अन्तर्गत अपभ्रश साहित्य का भरपूर परिचय देना चाहिए। जैन-भडारो में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रथो के परिचय पर भी एक लेख रहना अच्छा होगा। श्री जुगलकिशोर मुख्तार ने इस सम्बन्ध मे 'अनेकान्त' द्वारा उपयुक्त सूचियाँ प्रकाशित की है, किन्तु उनके मथे हुए सार से हिन्दी-जगत् को अधिक परिचित होने की आवश्यकता है। ____'बगला-साहित्य', 'गुजराती-साहित्य' और 'मराठी-साहित्य विभागो में प्रत्येक के लिए पचास पृष्ठ का औसत रखिए। इन निवन्धो में साहित्य का प्राचीन काल से अबतक का सक्षिप्त इतिहास और विकास, आधुनिक प्रवृत्तियाँ, साहित्य का काम करने वाली सस्थानो का परिचय यदि हो तो हिन्दी के लिए काम की चीज़ होगी । 'साहित्यप्रकाशन' के विभाग मे भारतीय साहित्य और सस्कृति एव इतिहास का प्रकाशन करने वाली देशी-विदेशी प्रधान ग्रथमालाओ का परिचय देना उपयोगी होगा । भावी कार्य-क्रम की योजनाओ और कार्य के विस्तृत क्षेत्र पर भी लेख हो सकते है। “अग्रेजी साहित्य तो वहुत बडी चीज है । उसको केवल एक दृष्टि से हम इस ग्रथ मे देखने का प्रयल करे, अर्थात् भारतवर्ष की भूमि, उस भूमि पर वसने वाले जन और उस जन की सस्कृति के सम्बन्ध में जो कार्य अग्रेजी के माध्यम से हुआ है, पच्चीस-तीस पृष्ठो मे उसका इस दृष्टि से परिचय कि हिन्दी में वैसा कार्य करने और उसका अनुवाद करने की ओर हमारी जनता का ध्यान आकर्षित हो। बुन्देलखण्ड-प्रात-विभाग के लिए सौ पृष्ठ रखें। उनमे बुन्देलखण्ड की भूमि, उस भूमि से सम्बन्ध रखने वाली विविध पार्थिव सामग्री, बुन्देलखण्ड के निवासी एव उनकी संस्कृति से सम्वन्ध रखने वाला अत्यन्त रोचक अध्ययन हमें प्रस्तुत करना चाहिए, जिसमें इस प्रदेश के जनपदीय दृष्टिकोण से किये हुए अध्ययन का एक नमूना दिया जा सकता है । 'समाज-सेवा' और 'नारी-जगत्' विभागो के लिए पचास-पचास पृष्ठ काफी होगे। 'समाजसेवा' के अन्तर्गत हमारे राष्ट्रीय और जातीय गुणो और श्रुटियो का सहानुभूतिपूर्ण विश्लेपण देना चाहिए । सामाजिक सगठन में जो प्राचीन परम्परामो की अच्छाई है और हमारे जीवन का जो भाग विदेशी प्रभाव से अब तक अछूता वचा है उमको जनता के सम्मुख प्रशसात्मक शब्दो में रखना आवश्यक है। पश्चिमी देशो मे सामाजिक विज्ञान परिपर्दै

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