Book Title: Prashnottaraikshashti Shatkkavyam
Author(s): Jinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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गुर्वावली और मेरे (महोपाध्याय विनयसागर) द्वारा लिखित वल्लभभारती प्रथम खण्ड, जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली और धर्मशिक्षा प्रकरण की भूमिका के आधार से लिखा गया है। प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक
श्रीजिनवल्लभसूरि की काव्यशास्त्र की दृष्टि से विद्वज्जनाह्लादक यह प्रमुख कृति है। इसकी रचना किस संवत् में हुई? इसका कहीं उल्लेख नहीं है। यह निश्चित है कि श्रीअभयदेवूसरि से उपसम्पदा प्राप्त करने के पश्चात् ही इस काव्य की रचना हुई है। क्योंकि काव्य के श्लोक सं० १५९ में वे स्वयं स्वीकार करते हैं कि 'मद्गुरवो जिनेश्वरसूरयः' मेरे गुरु जिनेश्वरसूरि हैं। जबकि इसके पूर्व ही श्लोक सं० १५८ में – 'के वा सद्गुरवोऽत्र चारुचरणश्रीसुश्रुता विश्रुताः"श्रीमदभयदेवाचार्याः' लिखते हैं। जिनवल्लभजी की उदार गुणग्राहकता थी कि अपने मूल गुरु जिनेश्वराचार्य का स्मरण भी किया है और सद्गुरु के रूप में श्रीअभयदेवसूरि का स्मरण भी किया है। - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि प्रश्न और उत्तरों के माध्यम से इस काव्य की रचना की गई है। प्रत्येक चरण में प्रश्न और उत्तर समवेत रूप से प्राप्त होते हैं। विद्वानों को उत्तर देने के लिए दिमागी व्यायाम करते हुए अपनी उद्भट प्रतिभा का प्रयोग भी करना पड़ता है। १६१ पद्यों में इसकी रचना होने के कारण इसका नाम 'प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्यम्' रखा गया है। टीकाकार महोपाध्याय पुण्यसागर द्वारा भी यह नाम स्वीकृत होने से हमने भी इसी नाम का प्रयोग किया है। श्रीसुमतिगणि ने गणधरसार्द्धशतक बृहद्वृत्ति में 'प्रश्नोत्तरशतक' का नामोल्लेख किया है। जिनरत्नकोश (पृष्ठ २७५) में 'प्रश्नशतकम्' और 'प्रश्नषष्टिशतक' के नाम का उल्लेख किया है। इन दोनों नामों का उल्लेख जैन ग्रन्थावली में भी प्राप्त होता है। जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास (पृष्ठ ५८७) 'प्रश्नोत्तर' उल्लेख मिलता है। कैलाश श्रुतसागर सूची के अनुसार प्रश्नशतक' और 'प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक' दोनों नाम प्राप्त होते हैं।
काव्यशास्त्र की दृष्टि से यह अलङ्कार प्रधान काव्य है। अलङ्कारों में भी शब्दालङ्कारों में चित्रालङ्कार के नाम से इसका स्वतन्त्र स्थान है। जैसा कि कवि ने प्रारम्भ के प्रथम पद्य में ही कहा है:- 'कतिचिदबुधबुद्ध्यै वच्म्यहं प्रश्नभेदान्'