Book Title: Prashnottaraikshashti Shatkkavyam
Author(s): Jinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh
View full book text
________________
विवाहोत्सव में प्रश्नोत्तर
शताब्दियों से सामाजिक और लोक-परम्परा की दृष्टि से विवाहोत्सव एक श्लाघनीय और अनुकरणीय प्रसंग माना जाता है । विवाहोपरान्त वर-वधू, अपने मित्र मण्डली के साथ मिलते हैं तो प्रश्नोत्तरों की झड़ी लग जाती है। कुछ प्रश्न वर करता है और वधू उत्तर देती है और कुछ प्रश्न वधू करती है और वर उत्तर देता है। कुछ दशाब्दियों पूर्व यह परम्परा समाज में प्रचलित थी, मैं भी इसका भुक्तभोगी हूँ। इस प्रकार के प्रश्नोत्तर प्राचीन कथाग्रन्थों में भी प्राप्त होते हैं। सुमतिनाथ चरित्र, श्रीपाल चरित्र आदि में वर-वधू के प्रश्नोत्तर द्रष्टव्य है । प्राचीन कथा ग्रन्थों का अवलोकन किया जाए तो इस प्रकार के अनेक प्रसंग प्राप्त हो सकते हैं। राजस्थानी भाषा में तो प्रेमालाप समय के प्रश्नोत्तर कई ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। विद्वानों के लिए शोध का विषय है ।
यहाँ चित्रगत प्रश्नोत्तर और प्रहेलिका में सूक्ष्म अन्तर अवश्य है किन्तु आज हिन्दी जगत् में प्रश्नोत्तर, प्रहेलिका, पहेलियाँ, हियाली, गूढ़ा, मुकरी आदि इसी से सम्बन्धित हैं। अमीरखुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध ही हैं। 'हियाली' का एक विशाल संग्रह मेरे पास सुरक्षित है। कोई शोधार्थी इस पर शोध प्रबन्ध लिखना चाहे तो लिख सकता है।
टीकाकार महोपाध्याय पुण्यसागर
इनके सम्बन्ध में कोई विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। मुनि हर्षकुल रचित 'महोपाध्याय श्रीपुण्यसागर गुरुगीतम्' के अनुसार इनके पिता के नाम . उदयसिंह था और माता का नाम उत्तमदे था और इन्होंने जिनहंससूरि के स्वहस्त से दीक्षा ग्रहण की थी ।
धन उत्तमदे उरि धरयउ, उदयसिंह कुलि दिनकार जी । जिनशासन मांहि परगड़, सुविहित गच्छ सिणगार जी ॥ ५ ॥ श्रीजिनहंस सूरिसरइ, सई हथ दीखिय शीस जी ।
हरषी 'हरषकुल' इम भइ, गुरु प्रतपउ कोड़ि वरीस जी ॥ ६ ॥ (ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृष्ठ ५७) जिनहंससूरि - मारवाड़ के सत्रावा ग्राम निवासी चोपड़ा गोत्रीय मेघराज और कमला देवी इनके पिता-माता थे । इनका जन्म विक्रम संवत् १५२४ में हुआ था। जन्म नाम धनराज था। विक्रम संवत् १५३५ में विक्रमपुर
२५