Book Title: Prashnottaraikshashti Shatkkavyam
Author(s): Jinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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१७. पैंतीसवाणी अतिशय स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'गा. २७',
अप्रकाशित बीकानेर आदिनाथ स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'आदित सयल जगजीव सुहकार परमेसरं... गा. २६', राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ३०३६७ मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टक, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'आदित श्री जिनदत्तसूरिंद पय... गा. ९', प्रकाशित-दादागुरु भजनावली . महावीरपंच कल्याणक स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, आदित नमइ पाय मुणिराय जसु हाथ जोड़ी... गा. २१', अभय ग्रन्थालय, बीकानेर,
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर २७४२२ २१. वैराग्य सज्झाय, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'गा. १२', अप्रकाशित २२. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'गा. ५',
अप्रकाशित शिष्य-परम्परा
महोपाध्याय पुण्यसागर के अनेकों शिष्य होंगे किन्तु उनके नामोल्लेख प्राप्त नहीं होते है। इनके प्रमुख शिष्य उपाध्याय पद्मराजगणि है।
उपाध्याय पद्मराजणि - ये संस्कृत प्राकृत के प्रौढ़ विद्वान् थे, कवि. भी थे और टीकाकार भी थे। पुण्यसागरजी ने स्वयं 'युक्तायुक्तविवेचक' कहकर इनकी प्रशंसा की है। पुण्यसागरजी की दोनों जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति एवं प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक टीका में इनका पूर्ण सहयोग रहा है। इनके द्वारा निर्मित छोटी-मोटी कृतियाँ निम्न है:
१. भावारिवारण पादपूर्ति स्तोत्र, स्वोपज्ञ वृत्ति सहित - आचार्य जिनवल्लभसूरि रचित समसंस्कृत प्राकृत में महावीर स्तोत्र अपरनाम भावारिवारण स्तोत्र प्राप्त है। उसी के चतुर्थ चरण की पूर्ति स्वरूप इस स्तोत्र की रचना की है। इस पर स्वयं ने टीका भी लिखी है। इस स्तोत्र और टीका को देखते हुए पद्मराज भी प्रौढ़ विद्वान् थे यह निःसन्देह है। श्लोक और टीका के आद्यन्त इस प्रकार है:मूलादि- वन्दे महोदयरमारमणीललाम,
कामं महामहिमधामविलासधामम्।
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