Book Title: Prashnottaraikshashti Shatkkavyam
Author(s): Jinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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१. प्रश्नशतक - इसके प्रणेता नरचन्द्रोपाध्याय है, जो कि सिंहसूरि के शिष्य है। ये काशद्रह गच्छ के हैं। इसकी रचना संवत् १३२४ में हुई है। इसकी स्वोपज्ञ वृत्ति भी प्राप्त है। प्रति सन्मुख न होने के इसका विवेचन सम्भव नहीं है। इसका उल्लेख जिनरत्नकोष में पृष्ठ २७५ पर हुआ है।
___२. भावप्रदीप - इसके रचयिता पूर्णिमागच्छीय कवि हेमरत्न हैं। अन्य प्रति के अनुसार हेमरत्न ही हेमरत्नसूरि हुए थे। श्री देवतिलकसूरि के राज्य में श्रीनर्मदाचार्य के प्रसाद से पद्मराज के शिष्य हेमरत्न ने यह रचना की है। अन्य प्रति-लेखन के समय श्री ज्ञानतिलकसूरि विद्यमान थे। इसकी रचना विक्रम संवत् १६३८ में विजयदशमी के दिन हुई है। बीकानेर के मन्त्री श्री कर्मचन्द्र बच्छावत के अनुरोध पर इसकी रचना की गई है। प्रारम्भ के पद्य ५ से ७ तक और पद्य ११४ से ११६ तक कर्मचन्द्र मन्त्री के सम्बन्ध में द्रष्टव्य है.। मन्त्री कर्मचन्द्र बच्छावत खरतरगच्छ के अनन्योपासक थे। अन्य गच्छ के होने पर भी उनकी प्रार्थना से पूर्णिमागच्छ के कवि इस काव्य को लिखे, यह कवि की गच्छवाद के ऊपर सद्भाव की ही दृष्टि प्रस्तुत करता है।
यह केवल प्रश्नोत्तर काव्य है। प्रत्येक श्लोक में प्रश्न उद्भव कर उसी में उत्तर दिया गया है। प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्य की तरह श्लोक के
अन्त में उत्तर या चित्र एवं जातियों का उल्लेख इसमें प्राप्त नहीं है। इस काव्य . के १२१ श्लोक हैं। इसकी प्रति टिप्पण युक्त है। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में इसकी दो प्रतियाँ प्राप्त हैं। एक स्व-लिखित एवं दूसरी अन्य लेखक लिखित है। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर की पत्रिका स्वाहा, अङ्क २-३ संवत् १९६९ से प्रकाशित है। इसका सम्पादन कार्य मैंने ही किया था। इसका आद्यन्त इस प्रकार है:आदि- श्रीमते विश्वविश्वैकभास्वते शाश्वतधुते।
केवलज्ञानिगम्याय नमोऽनन्ताय तेजसे ॥१॥
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