Book Title: Prashnottaraikshashti Shatkkavyam
Author(s): Jinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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कवि हर्षकुल ने 'सइं हथ दीखिय शीस जी' अर्थात् जिनहंससूरि के स्वहस्त दीक्षित शिष्य थे। जिनहंससूरि का राज्यकाल १५५५ से १५८२ तक है। अतः इनकी दीक्षा इसी मध्य में हुई होगी। इनको उपाध्याय पद किसने प्रदान किया यह स्पष्ट उल्लेख नहीं है। सम्भव है जिनहंससूरि ने ही इनको उपाध्याय पद प्रदान किया हो अथवा जिनहंससूरि के पट्टधर जिनमाणिक्यसूरि ने १२ मुनियों को उपाध्याय पद दिया था उस समय दिया हो। अधिक सम्भावना है कि उन्होंने ही इनको उपाध्याय पद दिया हो। जिनमाणिक्यसूरि के पट्ट पर जिनचन्द्रसूरि संवत् १६१२ में पट्टधर बने। सूरिपद के योग तप आदि उपाध्याय पुण्यसागरजी ने ही करवाए थे।
युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि अल्पावस्था में ही आचार्य बने थे अत: उनका शिक्षण-दीक्षण वयोवृद्ध गीतार्थ महोपाध्याय पुण्यसागर, महोपाध्याय धनराज
और महोपाध्याय साधुकीर्ति की देखरेख में ही हुआ था। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ने विक्रम संवत् १६१७ में जिनवल्लभसूरि कृत 'पौषधविधि प्रकरण' पर 'टीका' की रचना की थी। उसकी रचना प्रशस्ति में लिखा है कि इसका संशोधन महोपाध्याय पुण्यसागर, पाठक धनराज और पाठक साधुकीर्ति ने किया था
श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायैः पाठकोद्रधनराजैः। अपि साधुकीर्ति गणिना, सुशोधिता दीर्घदृष्टयेम्॥२६॥
अत: यह निश्चित है कि संवत् १६१७ के पूर्व ही इनको महोपाध्याय पद प्राप्त हो चुका था।
दादाबाड़ी (देदानसर तालाब के पास) जैसलमेर शिलापट्ट पर अंकित है(१) ॥ संवत् १६५० वर्षे आषाढ़ मासे शुक्लपक्षे युत नवमीदिने (२) रव(वि)वारे चित्रानक्षत्रे रावल श्रीभीमजीविजयिराज्ये श्री (३) श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुके कारिते युगप्र(४) धानश्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि (५) समलंक(कृ)तानामादेशेन श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायैः (६) प्रतिष्ठिते तत्प्रतिष्ठोत्सवश्च सं० पासदत्त सुश्रावकेण (७) भार्या लीलादेः पुत्र सं० शालिभद्र केवंना चंद्रसेन (८) णस्त:(स्तु)॥ श्रीः संभावंश नारांइण पेमणी लिखतं॥ (महोपाध्याय विनयसागर सम्पादित खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह लेखाङ्क १२०२) १. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पृष्ठ २६