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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
अनुवाद करते समय कोष्टकमें रखा गया है। (३) कचित् वृत्तिमें (प्राकृत शब्दोंके ) मूल संस्कृत शब्द नहीं दिये गए हैं; ऐसे शब्द अनुवादमें कोष्टकमें दे दिये हैं। { ४) मूलमें न होनेवाले परंतु अर्थके स्पष्ट होनेके लिए आवश्यक शब्द अनुवादमें कोष्टक रखे गए हैं। (५) अप्रभ्रंश श्लोकोंकी संस्कृत छायाके अनंतर तुरंत उसका अनुवाद दिया है । (६) अपभ्रंश श्लोकके प्रथम आनेपर उसका अनुवाद वहींपर दिया गया है। पर उसी श्लोकके फिरसे आगे आनेपर, उसका अनुवाद पुनः नहीं दिया है । (७) कुछ शब्दोंके आगे (= ) इस चिन्हको रखकर उन शब्दोंका स्पष्टीकरण दिया गया है। (८) भाषांतरमें आवश्यक स्थलोंपर अगले पिछले सूत्रोंके संदर्भ प्रस्तुत किये हैं। (९) अनुवादमें क्वचित् फूटनोट्स दिये हैं। (१०) प्रत्येक सूत्रके अनुवादके अनंतर सूत्रोंके क्रमांक मूलानुसार दे दिये हैं।
मूलमेंसे पारिभाषिक शब्दोंका संक्षिप्त स्पष्टीकरण अंतकी टिप्पणियों में किया है। यहाँपरभी जिस शब्दपर पहलेही टिप्पणी दे दी गई है उसपर उसके फिरसे आनेपर पुनः टिप्पणी नहीं दी गयी है। आभारप्रदर्शन
गु. डॉ. उपाध्येजीका मैं इसलिए आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस अनुवादको प्रस्तुत करनेका अवसर दे दिया। मेरे इस अनुवादमेंसे हिंदी भाषाका सुधार और जाँच कार्य हमारे विलिंग्डन महाविद्यालयके हिंदीके प्राध्यापक अ. अ. दातारजी तथा प्रा. सु. ल. जोशीजीने बडी आस्थापूर्वक किया है जिसके लिए मैं उनकाभी अत्यंत आभारी हूँ। सूत्रसूचीके कार्यमें सहायता करनेवाले मेरे पुत्र यशवंतकाभी मैं आभारी हूँ।
विलिंग्डन महाविद्यालय, सांगली.
के. पा. आपटे
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