Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ (१५) न्याय-विषय में "प्रमाण-मीमांसा" नामक अधूरा प्रन्थ पाया जाता है। इनकी न्याय-विषयक बत्तीसियों में से एक "श्रन्ययोग व्यवच्छेद" है और दूसरी "अयोग व्यवच्छेद" है । दोनों में प्रसाद गुण संपन्न ३२-३२ श्लोक हैं । उदयनाचार्य ने कुसुमांजलि में जिस प्रकार ईश्वर की स्तुति के रूप में न्यायशास्त्र का संथन दिया है उसी तरह से इनमें भी भगवान महावीर स्वामी की स्तुति के रूप में षटदर्शनों की मान्यताओं का विश्लेषण किया गया है । श्लोकों की रचना महाकवि कालिदास और स्वामी शंकराचार्य की रचना-शैली का स्मरण कराती है । दार्शनिक श्लोकों में भी स्थान स्थान पर जो विनोदमय अंश देखा जाता है; उससे पता चलता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र हंसमुख और प्रसन्न प्रकृति वाले होंगे। "अन्य-योग-व्यवच्छेद" बत्तीसी पर मल्लिषेण सूरि कृत तीन हजार श्लोक प्रमाण "स्याद्वाद मन्जरी" नामक प्रसाद गुण संपन्न भाषा में सरल, सरस और ज्ञान-वर्धक व्याख्या अन्य उपलब्ध है । इस व्याख्या प्रन्थ से पता चलता है कि मूल कारिकाएँ कितनी गंभीर, विशद अर्थ वाली और सच कोटि को है। इस प्रकार हमारे चरित्र-नायक की प्रत्येक शास्त्र में अव्याहत गति दूरदर्शिता, व्यवहारज्ञता, एवं साहित्य-रचना-शक्ति को देख करके विद्वान्तों ने इन्हें "कलिकाल-सर्वज्ञ" जैसी उपाधि से विभूषित किया है । पीटर्सन श्रादि पाश्चिमात्य विद्वानों ने तो प्राचार्य श्री को Ocean of Knowledge अर्थात् शान के महा सागर नामक जो यथा तथ्य रूप वाली उपाधि दी है। वह पूर्ण रूपेण सत्य है । ___ कहा जाता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्रशंसनीय जीवन-काल में लगभग डेद लान मनुष्यों को अर्थात तैतीस हजार कुटुम्बों को जैन-धर्मावलम्बी बनाये थे। अन्त में चौरासी वर्ष की आयु में आजन्म अखंड प्रमचर्य व्रत का पालन करते हुए और साहित्य-प्रन्थों की रचना करते हुए संवत् १२२६ में गुजरात प्रान्त के ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण भारत के असाधारण तपोधन रूप इन महापुरुष का स्वर्गवास हुश्रा । आपके अनेक शिष्य थे, जिनमें श्री रामचन्द्र आदि सात शिष्य विशेष रूप से प्रख्यात हैं । अन्त में विशेष भावनाओं के साथ में यही लिखना है कि प्राचार्य हेमचन्द्र की श्रेष्ठ कृतियों, प्रशस्त जीवन और जिन-शासन-सेवा यही प्रमाणित करते हैं कि आप असाधारण विद्वान, महान जिन-शासन-प्रभावक और भारत की दिव्य विभूति थे। अनन्त चतुर्दशी विक्रमाद २०१६ । । रतनलाल संघवी छोटी सादड़ी, (राजस्थान)

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