Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ ( १४.) दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात आपके जन्म-जोत गुण तथा सहजात प्रतिभा और सर्वतोमुखी बुद्धि स्वयमेव दिन प्रतिदिन अधिकाधिक विकसित होती गई । जिस संयम में श्रापकी आयु केवल इक्कीस वर्ष को ही थी, तभी आप एक परिपक्व प्रकांड पंडित के रूप में प्रख्यात हो गये थे । आपकी असाधारण विद्वसा एवं अनुपम प्रतिभा से आकर्षित होकर श्री देवचन्द्र सूरि ने वि० संवत् ११६६ के वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन मध्याह्नकाल में खंभात शहर में चतुर्विध श्री संघ के समाने श्रापको आचार्य पदवो प्रदान की और आपका शुभ नाम उस समय में "प्राचार्य हेमचन्द्र सूरि" ऐसा जाहिर किया । गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह के आग्रह से आपने संस्कृत, प्राकृत भाषा का एक आदर्श और सरल किन्तु परिपूर्ण तथा सर्वात संपन्न व्याकरण बनाया; जो कि "सिद्ध हेम शब्दानुशासन" के नाम से विख्यात है। आप ने उक्त व्याकरण के नियमों की सोदाहरण-सिद्धि हेत "संस्कृत इयाश्रय' और "प्राकृत-द्वयाश्रय" नामक दो महाकाव्यों की रचना की है। जो कि काव्य और व्याकरण दोनों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। ये काव्य वर्णन-विचित्रता और काव्य-धमत्कृति के सुन्दर उदाहरण हैं। बड़ी खूबी के साथ कथा-माग का निर्वाह करते हुए व्याकरण-गत नियमों का क्रमशः समावेश इनमें कर दिया गया है। दोनों काथ्यों का परिमाण क्रमशः २८२८ और १५०० श्लोक संख्या प्रमाण है। संस्कृत काव्य पर अभय तिलक गणि की टीका और प्राकृत काव्य पर पूर्ण कलश गरिण की टीका उपलब्ध है। दोनों ही काव्य सटीक रूप से बम्बई संस्कृत सीरीज (सरकारी प्रकाशन) द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। ____ "ध्याकरण और काव्य" रूप ज्ञान-मन्दिर के स्वर्ण-कलश समान चार कोष मन्थों का भी प्राचार्य हेमचन्द्र ने निर्माण किया है। जिनके क्रमशः नाम इस प्रकार हैं:-(१) अभिधान चिन्तामणि; (२) अनेकार्थ संग्रह; (३) देशी नाममाला और (४) शेष नाम मालो । भाषा विज्ञान की दृष्टि से ' देशी नाम माला" कोष का विशेष महत्व है । यह कोष पूना से प्रकाशित हो चुका है। रस और अलंकार जैसे विषयों का विवेचन करने के लिये आपने काव्यानुशासन नामक ग्रन्थ की रचना की है । इस पर दो टीका ग्रन्थ मी उपलब्ध है। जो कि क्रमशः "अलंकार चूड़ामणि" और "अलंकार-वृत्ति-विवेक'' के नाम से विख्यात हैं। छन्द-शास्त्र में "छन्दानुशासन" नामक आपकी कृति पाई जाती हैं। इसमें संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं के छन्दों का अनेक सुन्दर उदाहरणों के साथ विवेचन किया गया है। आध्यात्मिक विषय में आपको रचना 'योग-शास्त्र' अपर नाम 'अध्यात्मोपनिषद्' है । यह ग्रन्थ मूल रूप से १२०० श्लोक प्रमाण है । इस पर भी बारह हजार श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञ दीका उपलब्ध है। स्तोत्र ग्रन्थों में बोतराग-स्तोत्र" और "महादेव-स्तोत्र" नामक दो स्तुति ग्रन्थ आप द्वारा रचित पाये जाते हैं। अति-विस्तृत और अति गंभीर 'त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" तथा परिशिष्ट पर्व प्रन्थ आपकी कथात्मक कृतियाँ हैं । इन प्रों की कथा-वस्तु की दृष्टि से उपयोगिता है । इतिहास के तत्त्व भी इनमें हूँढने से प्राप्त हो सकते हैं।

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