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मागधी व्याकरणम् . मूल भाषांतर. संस्कृत आयुष् अने अप्सरस शब्दना अंत्यव्यंजननो सू विकहपे थायः संस्कृत दीर्घायुसू शब्दना विकल्पे दीहाउसो तथा दीहाऊ एवां बे रूप थाय ने. संस्कृत अप्सरल शब्दना अच्छरसा तथा अच्छरा एवां रूप थाय .
॥ टुंढिका ॥ आयुस् अप्सरस ६५ वा १५ दीर्घायुसु सर्वत्र रखुकू ख थ घ ध० धस्य ह क ग च जे ति यूयुक् अनेन वा सू स अतः से? दीदा सो पदे दीर्घायुसू सर्वत्र रखुकू ख थ प ध नां घस्य हः क ग च० यदुक् अंत्यण्सूलुक् ११ अक्तीबे दीर्घः उ ऊ अंत्यव्यंग्सूलुक् दीहाऊ अप्सरस् अनेन वा सू सा श्रादित्यापू हखायाश्चप्सा प्स्यस्य छः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उस्य चः अंत्यव्यंग सबुक अचरसा पक्ष अप्सरसूअंत्यव्यंग्सलुक्श्रादित्यापू शेषं पूर्ववत् अठरा ॥२०॥ टीका भाषांतर. आयुस् अप्परम् ६५ वा १२ दीर्घायुसू शब्दने सर्वत्र रलुकू सूत्रथी दीघायुस् थयु, पनी ख थ घ ध० सूत्रधी घ नो ह थयो, एटले दीहायुम् थयु, पनी क ग च ज सूत्रथी य नो लुक् अयो, त्यारे दीहाऊस थयु, पनी आ सूत्रधी विकटपे स थाय, पनी अतःसे? सूत्रथी दीहाऊसो रूप सिद्ध थयु. विकटपपई दीर्घायुस शब्दने सर्वत्र रलुक, ख थ घध भां घस्य हः, क गच यलुक अंत्यव्यंजन सबुक्, ए नियमो लागी अक्लीये सौदीर्घः सूत्रथी ऊकार दीर्घ थयो, पनी अंत्यव्यंजन सूत्रथी विनक्तिनो स् उडी जवाथी दीहाऊ एवं रूप सिद्ध थयु. संस्कृत अप्सरसने श्रा सूत्रथी विकटपे म नो स करी आप् सूत्रथी आकार थाय, पनी हवाछयश्च सूत्रथी प्स नो छ थयो, पनी अनादौ द्वित्वं सूत्रथी विर्ताव करी वितीय पूर्व छ नो च थयो, पळी अंत्यव्यंजनसूत्रथी स नो लुक् श्राय, एटले अच्छरसा रूप सिद्ध थयु. विकटपपदे अप्सरम् शब्दना अंत्यव्यंजनना सू नो लुक् करी आत् सूत्रथी आप श्रावी बाकीनी साधनिका पूर्वनी जेम करवी, एटले अच्छरा रूप सिद्ध थाय बे.
ककुन्नो दः॥॥ ककुनूशब्दस्यांत्यव्यंजनस्य हो जवति ॥ कहा ॥ मूल भाषांतर. ककुल् शब्दना अंत्यव्यंजननो ह थाय. संस्कृत ककुभ् शब्दर्नु प्राकृत कउहा रूप सिद्ध थाय बे.
॥ढुंढिका.॥ ककुन्नू ६१ ह ११ क ग व जे ति कलुक् अनेन जस्य हः श्रादित्याप ११ अंत्यव्यंग सबुक् हा ॥१॥
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