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प्रथमःपादः।
मूल भाषांतर. दुध् ६१ हा ११ संस्कृत कुध् शब्दने आ सूत्रथी ध् नो हा अयो. क्षुहा पली छाध्यादौ सूत्रथी क्ष नो छ थयो, एटले छुहा थयु, पनी अंत्यव्यं० सूत्रत्री विनक्तिप्रत्यय स नो लुक् अयो, एटखे छुहा एवं रूप सिद्ध श्रायः ॥ १७ ॥
शरदादे रत्॥१७॥ शरदादे रंत्यव्यंजनस्याद् जवति ॥ शरद् सरनिषक निषठ ॥ मूल भाषांतर. शरद् विगेरे शब्दोना अंत्य व्यंजननो अत् (अकार) थाय. सं. स्कृत शरद् शब्दनुं सरओ अने भिषक् शब्दनुं भिसओ रूप पायजे.
॥ढुंढिका ॥ शरदादि ६१ अत् ११ शरत् निषक ११ शषोः सः अनेन तस्य श्रः अतःसे? डित्य सर निसः ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. शरदादि ६१ अत् ११ संस्कृत शरद श्रने भिषक् शब्द , तेने शषोःसः सूत्रथी सरद भिसक एवं थयु. पीश्रा सूत्रथी अंत्य व्यंजन त् तथा क नो अ थयो. सरअ भिसअ एवं थयु. पठी अतःसेझै तथा डित्यं० सूत्रोधी सरओ अने भिसओ एवां रूप सिघ थाय .
दिक्प्राटषोः सः॥२५॥ एतयोरंत्यव्यंजनस्य सो जवति ॥ दिसा ॥ पाजसो ॥ मूल भाषांतर. दिक श्रने प्रावृष् शब्दना अंत्य व्यंजननो स श्राय . संस्कृत दिक् शब्दनो दिसा अने प्रावृष् शब्दनो पाउसो एवो प्राकृत शब्द प्राय ॥१॥
॥ढुंढिका ॥ दिक् प्रावृष् ६ स ११ दिक् अनेन कू स श्रादित्याप अंत्य व्यंग सलुक दिसा प्रावृषा प्रावृट् शरत्त पुंस्त्वं अनेन षस्य सः ११ श्रतः । सेडों पाउसो ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. दिक् प्रावृष ६२ स ११ संस्कृत दिक् शब्दने था सूत्रथी क नो तू थयो, पनी आत् ए नियमथी आकार थयो, अने अंत्यव्यं० वडे विजक्तिप्रत्यय सू नो लुक् थई दिसारूप सिख थयु. संस्कृत प्रावृषू शब्दने प्रावृट् शरत सू.
थी पुलिंगपणुं करी आ सूत्रथी ष् नो स श्रयो पनी अतासे? सूत्रथी पाउसो रूप सिद्ध थयु.॥१ए॥
आयुरप्सरसोर्वा ॥२०॥ एतयोरंत्यव्यंजनस्य सो वा नवति ॥ दीहाउसो । दीहाऊ॥श्रहरसा। शहरा॥
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