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तिब्बत को एक प्रख्यात गुम्बा
इस जगह की ख्याति और बढ़ गई है। मुझे पैकौली जाने का अवसर एक बार मिला था। यहां पर एक विशाल मठ बना हुआ है। मठ के पास एक बड़ा तालाब है और तालाब के किनारे दो पेड़ है, जिनके चारों ओर सुन्दर स्वच्छ चबूतरे बने हुए हैं।
इन पेड़ों के तनों, डालों और टहनियों पर साफ़ देवनागरी की सुन्दर लिपि में 'राम' शब्द स्थान-स्थान पर लिखा हुआ है। इन वृक्षों के तनों और मोटी डालों के ऊपर से एक प्रकार का पतला छिलका समय-समय पर अलग होता रहता है, जिसके नीचे से साफ़ और नया 'राम' निकल पाता है।
इन विचित्र वृक्षों के बारे में अगर कोई किंवदन्ती सुनने में न आती तो मुझे आश्चर्य ही होता। पूछने पर पता चला कि ये वृक्ष 'बोधि-वृक्ष' की शाखाएँ हैं। स्वयं शाक्य-मुनि गौतम जिस वृक्ष के तले 'बुद्धत्व' को प्राप्त हुए थे उसकी डालें और टहनिया काट-काटकर लोग न जाने कहाँ-कहाँ ले गये थे। कहते हैं, ये पेड़ लका द्वीप से मँगाये गये थे।
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