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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग
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हमारे पास तक पहुँचकर आरजोपा बड़ी देर तक अपने सामने ताकता हुआ चुपचाप खड़ा रहा। वह हॉफ नहीं रहा था । ऐसा अलबत्ता मालूम पड़ रहा था जैसे वह अर्द्धमूर्च्छितावस्था में हो । उसमें कुछ बोलने की या हिलने-डुलने की उस समय बिल्कुल शक्ति न थी। खैर, थोड़ी देर के बाद उसका ध्यान टूटा और वह अपने आपे में आ गया। पूछने पर उसने बतलाया कि पाबोंग की गुम्बा में वह एक गोमन से लङ गोम् की विद्या सीख रहा था पर गोमन के बीच ही में वहाँ से कहीं चले जाने पर अब वह सांग को शालू गुम्बा में शिक्षा पूरी करने जा रहा था ।
उसने मुझे और कुछ नहीं बतलाया और शाम तक वह बहुत उदास सा रहा। बाद को उसने यौन देन से बता दिया था कि वह अपने आप न जाने कब ध्यानस्थ हो गया था । और सचमुच इसके असली कारण पर वह मन ही मन बहुत लज्जित था ।
बात यह थी कि हमारे नौकर और खच्चरों के साथ चलते चलते रजोपा बेसब्र हो गया था। इनकी उस सुस्त चाल पर वह बेतरह खीझ गया था । सोचते-सोचते उसका ध्यान हमारी ओर भी गया । उसने मन ही मन सोचा कि इस समय हम लोग चाय पीकर मज े से बैठे होंगे। शायद गोश्त भी उड़ रहा हो । यही बातें सोचते-सोचते वह अपने आपको और अपने आस-पास की चीजों को भूल गया। उसकी कल्पना शक्ति अच्छी थी । उसने साफ़-साफ़ आग पर पकते हुए गोश्त को देखा और उसके मुँह में पानी भर श्राया । चट उसने अपने लम्बे-लम्बे क़दम बढ़ाने शुरू किये और ऐसा करने में जिस विशेष तेज़ चाल से चलने का वह अभ्यास कर रहा था, उसी के अनुकूल उसके पैर अपने आप जल्दी-जल्दी उठने लगे । और ऐसा हो जाने पर, जैसी कि उसकी आदत पड़ी हुई थी, सीखे हुए मन्त्रों का उच्चारण
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