Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 171
________________ उपसंहार १७१ मस्तिष्क में बहुत कम भाव या बोध पैदा करेगा और बहुत कम लोग उसे देख पायेंगे | । लेकिन कोई कितना भी चुपचाप चले, फिर भी मस्तिष्क की गति तो होती ही रहती है और इस गति की 'लहर' जिसे छूती है उस पर भी अपना असर किसी न किसी रूप में डालती है । तो भी लामा लोगों का कहना है कि अगर कोई दिमाग़ की हरकत को एकदम रोक दे तो वह दूसरे में कोई 'बोध' नहीं पैदा करता और इसलिए दूसरों के देखने में नहीं आता है Į पहले अध्याय में मृत्यु और परलोक -विषयक वर्णन में हम देख चुके हैं कि कुछ लोगों (डेलोग ) की आत्मा कुछ समय के लिए शरीर से बाहर निकलकर न जाने कहाँ-कहाँ (बार्डो ) घूम आती है, न जाने कौन-कौन से काम करती है और शरीर तब तक एक प्रकार से सोया हुआ पड़ा रहता है। कभी-कभी ये आत्माएँ दूसरी आत्माओं के शरीर में भी प्रवेश कर जाती हैं, वह शरीर जीवित प्राणियों की भाँति सारे कार्य करने लगता है। और जब आत्मा उसे छोड़कर अपने शरीर में वापस आ जाती है तो फिर वह निर्जीव हो जाता है। हिन्दुस्तान में इस तरह की बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं। सबसे ज्यादा मशहूर कहानी सुप्रसिद्ध वेदान्तवादी श्री शङ्कराचार्य के बारे में है। शङ्कराचार्य का एक बड़ा भारी प्रतिद्वन्द्वी था मण्डन मिश्र । मण्डन का कर्म-मीमांसा -शास्त्र में पूरा-पूरा विश्वास * इस सिद्धान्त के अनुसार मुक्ति केवल देव पूजन, यज्ञ, हवन, पशुबलि तथा धर्मग्रन्थ के पठन-पाठन से प्राप्त हो सकती है। श्री शङ्कर का कहना था कि नहीं, मोक्ष का साधन केवल एक वस्तु है और वह है ज्ञान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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