Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 178
________________ १७८ प्राचीन तिब्बत चाय लेकर आ गया। उसे वहाँ मुझे अकेली देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन मैंने उसे नाहक डरा देना उचित नहीं समझा और उससे कह दिया कि "रिम्पोछे केवल मुझसे एक बात कहने आये थे। काम हो जाने पर वे चले गये। उन्हें जल्दी थी।" काल्पनिक यिदाम् , जिनका बयान पिछले अध्याय में आ चुका है, दा मतलब हल करते हैं। एक से तो शिष्यों को यह शिक्षा मिलती है कि कहीं कोई भूत-प्रेत देवता-दानव आदि नहीं है और यदि है तो केवल उसकी अपनी कल्पना को सृष्टि में। दूसरे से नाचे दर्ज के जादूगर अपने लिए एक सामर्थ्यशालो अङ्गरक्षक का सामान करते हैं। इस विद्या की जानकारी रखनेवाले जादूगर जिस वेश में चाहें अपने को छिपा सकते हैं, जहाँ चाहें जा सकते हैं। __ इन सब बातों को देख-सुनकर मेरे मन में भी यह बात आई कि मैंन इतने साल तिब्बतवासियों के साथ बिता दिये। उनके साथ कहीं कहीं मेरा बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध भो रहा है लेकिन इन बातों का मैंने स्वयं उतना अनुभव नहीं किया जितना मुझे करना चाहिए था। मैंने अपने अभ्यास शुरू किये और हर्ष का विषय है कि अपने प्रयत्रों में मुझे थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली। __ मैंने अपने लिए एक साधारण हँसमुख मोटे लामा को चुना और अपने को एक साम में बन्द करके ध्यान और अन्य आवश्यक उपचार करना आरम्भ किया। कुछ महीनों के अभ्यास के पश्चात् काल्पनिक लामा प्रकट हुआ। धीरे-धीरे उसका आकार साफ हो गया और वह जीता-जागता आदमो सा मालूम होने लगा। वह एक तरह से मेग मेहमान हो गया और मेरे कमरे में मेरे साथ रहने लगा। तब मैंने अपना एकान्तवास तोड़ दिया और अपने नौकरों और ख मे के साथ एक यात्रा के लिए रवाना हो गई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, bowywatumaragyanbhandar.com

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