Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 180
________________ १८० प्राचीन तिब्बत केवल उनके बनानेवाले ही नहीं बल्कि और लोग भी अपनी आँखों से देखते हैं। ___ इन अलौकिक घटनाओं के विषय में तिब्बतियों में आपस में मतभेद है। कुछ का विचार है कि सचमुच किसी वस्तु का आकाररूप स्थिति में आ जाता है और कुछ का कहना है कि कतो की विचार-शक्ति ही इतनी प्रबल होती है कि जिस आकार की वह सृष्टि करता है उसे दूसरे भी उसो प्रकार देख सकते हैं जिस प्रकार वह स्वयं। तिब्बती लोगों का कहना है कि आध्यात्मिक दृष्टि से ऊंचे पहुँचे हुए लामा साधारण मनुष्यों की भाँति नहीं मरते। वे जब चाहें अपने शरीर का ऐसा परित्याग कर सकते हैं कि उनके पंचप्राणों के पंचतत्वों में मिल जाने पर उनकी देह का चिह्न भी न रह जाय। सन् १९१६ में जब मैं शिगात्न पहुँची तो आगामो बुद्ध मैत्रेय भगवान् का नया विशाल मन्दिर लगभग पूरा-पूरा बनकर अपनी समाप्ति पर था। ताशो लामा की इच्छा थी कि इस मन्दिर में मूर्ति को प्राण-प्रतिष्ठा स्वयं उनके आध्यात्मिक गुरु और धार्मिक सलाहकार क्योंगबू रिम्पोछे अपने हाथों से करें। उन्होंने माननीय लामा से इसके लिए प्रार्थना भी की थी। लेकिन रिम्पोछे ने मना कर दिया था। उनका विचार था कि उन्हें मन्दिर के बनकर तैयार होने के पूर्व ही परलोक की यात्रा करनी पड़ेगी। इसके उत्तर में, कहते हैं, ताशी लामा ने अपने गुरु से मन्दिर की समाप्ति तक जीवित रहने का बहुत अनुरोध किया था। ___ क्योंगबू रिम्पोछे बिलकुल वृद्ध हो चुके थे और तपस्वी साधुओं की भाँति नगर से कुछ कोस की दूरी पर येशू त्सांगपू (ब्रह्मपुत्र नद) के तीर पर रहा करते थे। ताशी लामा की वृद्धा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com

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