Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 176
________________ १७६ प्राचीन तिब्बत की प्रतीक्षा करने लगी। वह नहीं आया। मैंने कुछ देर और रुककर नौकर को आगे जाकर ख़बर लाने की आज्ञा दी। उसने वापस लौटकर बतलाया कि कहीं किसी वांगदू का पता नहीं मिलता ! उसी दिन शाम को सूर्यास्त होने पर वांगदू एक क़ाफ़िले के साथ उसी घाटी में पहुँचा। वह बिल्कुल उसी लिबास में था जिसमें मैंने उसे रात को सपने और दिन को घाटी में देखा था । एक मिनट भी रुके बग़ैर मैं उन आदमियों के पास पहुँची और उनसे स्वयं प्रश्न किया। उनसे मालूम हुआ कि अभी सबेरे के समय तो वे लोग हमारे खेमे से काफ़ी दूरी पर थे और वांगदू बराबर सबेरे से शाम तक उनके साथ रहा था । बाद को मैंने और जगह पूछताछ की। क़ाफ़िले के रवाना होने की जगह और समय के बारे में दरियाफ्त किया तो मालूम हुआ कि जो कुछ वांगदू और उसके साथी कह रहे थे वह सच्चा था । (२) एक तिब्बती चित्रकार कभी-कभी मेरे पास आ जाता था । वह कुछ क्रोधी देवताओं की पूजा करता था। अपनी तस्वीरों में भी अक्सर इन्हीं को तरह-तरह के रूपों में दिखलाया करता था । एक दिन शाम को जब वह मेरे पास आया तो मैंने देखा एक धुँधली सी शकल - जिसकी सूरत उसी के चित्रों में से एक से हू-बहू मिलती-जुलती है— उसके पीछे-पीछे आगे को बढ़ रही है । मैंने सामने बढ़कर अपना एक हाथ उसकी ओर बढ़ाया तो ऐसा मालूम हुआ कि जैसे उँगलियों से कोई बड़ी मुलायम सी चीज़ छू गई हा । यह चीज़ मेरे स्पर्श करते ही ग़ायब हो गई । पूछे जाने पर चित्रकार ने स्वीकार किया कि वह पिछले कुछ दिनों से उसी देवता को पास बुलाने के लिए एक डब्थब कर रहा था जिसकी एक छाया - झलक मुझे देखने को मिली थी। और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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