Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 175
________________ उपसंहार १७५ इस अध्याय के आरम्भ में उनके तथ्य को समझने में सहायता पहुँचानेवाली तिब्बतवासियों की जो अपनी निजी धारणाएँ हैं, उनका भी संक्षिप्त रूप से परिचय दिया जा चुका है। अब यहाँ मेरे देखने में जो चमत्कार - पूर्ण बातें आई उन्हें और साथ ही साथ अपने निजी अनुभव की कतिपय विस्मयकारिणी घटनाओं का उल्लेख करके मैं इस उपसंहार को समाप्त करूँगी । (१) मेरे साथ एक तिब्बती नौकर था। वह किसी काम से तीन हफ्ते की छुट्टी लेकर घर चला गया। अपने घर पहुँचने पर सगे सम्बन्धियों से मिलकर मालूम होता है वह आने की बात भूल गया। तीन हफ्ते ख़तम हो गये और वांगदू का कहीं पता न था। मैं रोज़ उसके बारे में सोचती और हर रात को यह सोचकर सो जाती कि दूसरे दिन वह प्रातःकाल ज़रूर आवेगा । लेकिन इसी तरह कई दिन आये और कई रातें गई किन्तु वांगदू का आना न हुआ, न हुआ । मैंने समझ लिया, उसने अपनी नौकरी छोड़ देने का ही निश्चय कर लिया है। - इसके बाद एक रात को मैंने स्वप्न देखा कि वांगदू आ गया है पर एक नये ढङ्ग का लिबास पहने हुए है। उसके सिर पर जो टोपी है वह भी नई और विदेशी फैशन की है। दूसरे दिन सबेरे तड़के ही मेरे एक नौकर ने आकर सूचना दी- "वांगदू आ गया ।" मैं अचम्भे में आ गई। स्वप्न इतनी जल्दी सच हुआ चाहता है ! मैंने पूछा - "कहाँ है ?" उसने बतलाया - मैं अभी-अभी उसे देखता आ रहा हूँ । खेमे से बाहर निकलिए। वहीं, उस सामने की घाटी में । मैं गई । वांग को देखा भी। उसके सिर पर वैसी ही टोपी थी और सचमुच वह उसी लिबास में था, जिसमें मैंने उसे रात को सपने में देखा था । मैं लौटकर खेमे में आई और वांगदू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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