Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 174
________________ १७४ प्राचीन तिब्बत चिन्ता हुई। शव को एक गुप्त स्थान में रखकर वे अपने गुरु की खोज में तुरन्त निकल पड़े । इधर शंकराचार्य अपने अध्ययन में इतने दत्तचित्त थे कि और सब बातें वे एकदम भूल गये थे। उन्हें भारती तक की सुधि न रही थी। लेकिन जब उनके शिष्यों ने पास पहुँचकर उन्हीं का बनाया हुआ एक पद गाकर सुनाया तो उन्हें चेत हो आया और तुरन्त वे राजा मयूख के शरीर का परित्याग करके अपनी देह में आ गये, ठीक उसी समय जब कि रनिवास से छूटे हुए नौकरचाकर उसे चिता पर रखकर उसमें अग्नि का स्पर्श कराने ही जा रहे थे | श्री शङ्कराचार्य एक बार फिर भारती के पास वापस आये 1 शास्त्रार्थं हुआ और उन्होंने उसे अपने श्रेष्ठ अनुभव-ज्ञान का सब प्रकार से परिचय दिया। भारती चकित रह गई। उसे अपनी हार माननी पड़ी। fasect on घटनाओं के विषय में एक बहुत बड़ा ग्रन्थ अलग ही बनकर तैयार हो सकता है, लेकिन सिर्फ़ एक व्यक्ति की खोज में ये सब बातें कहाँ से आ सकती हैं। और वह भी तब जब कि तिब्बत में यात्रा करनेवाले विदेशियों के लिए सुविधाएँ बहुत कम हैं। मेरी बड़ी प्रबल इच्छा है कि मेरा यह वर्णन अन्य अनुभवशील यात्रियों के मन में इस विस्मय - पूर्ण जादू के देश की विचित्र बातों के पता लगाने और प्राचीन hr चीन के सामने रखने की उत्कण्ठा पैदा कर दे। जो बातें जहाँ-जहाँ जैसी मेरे देखने में आई, उनका मैंने जो कुछ मुझसे बन पड़ा, इस पुस्तक के पिछले पन्नों में वर्णन कर दिया है। छठे अध्याय में मैं मनोविज्ञान और इच्छा-शक्ति से सम्बन्ध रखनेवाली कुछ अलौकिक घटनाओं का उल्लेख कर चुकी हूँ और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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