Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 172
________________ १७२ प्राचीन तिब्बत था और श्री शङ्कर बिलकुल इसके प्रतिकूल विचारों के थे। श्री शङ्कर ने मण्डन को शास्त्रार्थ के लिए आमन्त्रित किया। दोनों में यह तै हुआ कि शास्त्रार्थ में हारनेवाला जीतनेवाले का शिष्यत्व ग्रहण करेगा और उसे अपने गुरु की भाँति ही जोवन व्यतीत करना होगा । इस समझौते के अनुसार अगर श्री शङ्कराचार्य हार जाते तो उन्हें अपना संन्यास त्याग करके विधिवत् विवाह करना पड़ता और गार्हस्थ्य-जीवन व्यतीत करना होता । और अगर उनकी जीत होती तो मण्डन को अपनी विवाहिता पत्नी का परित्याग करके गेरुआ बाना पहनकर संन्यास ग्रहण करना होता । ऐसा हुआ कि मण्डन क़रीब क़रीब हार ही रहा था और शङ्कर के मण्डन को अपना चेला बनाने में थोड़ी ही कसर रह गई थी कि मण्डन की स्त्री भारती ने बीच में बाधा दी। श्री भारती पढ़ी-लिखी और बड़ी विदुषी स्त्री थी। उसने कहा“हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पत्नी पति की अर्धाङ्गिनी है । दोनों एक हैं। तुमने हमारे स्वामी को तो पराजित कर दिया; लेकिन जब तक तुम मुझे भी शास्त्रार्थ में नहीं हरा देते तब तक तुम्हारी जीत अधूरी ही है।" बात जँचती सी थी । शङ्कराचार्य निरुत्तर हो गये । उन्होंने भारती के साथ शास्त्रार्थ प्रारम्भ किया। भारती को एक चालाकी सूझी। प्राचीन हिन्दू-शास्त्रकारों ने धर्म के अन्तर्गत काम-शास्त्र का भी एक प्रमुख स्थान माना है। भारती ने इसी विषय में कुछ प्रश्न किये जिनका उत्तर श्री शङ्कर, बाल-ब्रह्मचारी होने के कारण, न दे सके। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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