Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

View full book text
Previous | Next

Page 157
________________ अध्यात्म की शिक्षा १५७ मुझे पता नहीं इस प्रकार के विचार विवासियों ने कहाँ से लिये हैं । और यद्यपि एक लामा ने मुझसे बतलाया भी कि बोनपा इन सिद्धान्तों की शिक्षा तिब्बतवासियों को पद्मसम्भव के तिब्बत में आने के बहुत पहले ही दे चुके थे, लेकिन मेरा अनुमान है कि ये विचार तिब्बत में नेपाल से होकर चीन या भारतवर्ष से ही आये हैं। मस्तिष्क की स्थिरता और चित्त की एकाग्रता की परीक्षा के लिए तिब्बतवासियों ने एक विलक्षण तरकीब ढूंढ निकाली है । मिट्टी या पीतल के छोटे-छोटे दिये मक्खन से भरकर ध्यान लगानेवाले के सर पर रख दिये जाते हैं। इनमें एक बत्ती पड़ी जलती रहती है। साधक ध्यान लगाये बैठा रहता है। ज्योंही यह दिया सिर पर से खसककर नीचे गिरा त्योंही समझ लिया जाता है कि साधक पूर्ण रूप से अपने मन को वश में कर सकने में विफल रहा है। कहते हैं कि एक लामा ने अपने किसी शिष्य की परीक्षा लेने के लिए इसी प्रकार का एक दीपक उसके सिर पर रात को रख दिया और उसे ध्यानावस्थ हो जाने की आज्ञा दी। दूसरे दिन सबेरे वे जाकर देखते क्या हैं कि शिष्य उसी प्रकार पालथी मारे चुपचाप बैठा हुआ है और चिरारा उसके बग़ल में नीचे जमीन पर सँभालकर रक्खा हुआ है। मक्खन समाप्त हो गया था और बत्ती बुझी हुई थी। बेचारे शिष्य ने इस अभ्यास का असली मतलब तो समझा नहीं था । उसने सच सच बता दिया कि जब मक्खन के ख़तम हो जाने पर चिराग गुल हो गया तो मैंने स्वयं उसे उतारकर पृथ्वी पर रख दिया था । जब गुरु लामा ने उससे पूछा"अगर तुम ध्यान में थे तो तुम्हें इसी बात का पता क्योंकर चला * अर्थात् तिब्बत में बौद्ध धर्म के आविर्भाव के पहले । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com }

Loading...

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182