Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 162
________________ १६२ प्राचीन तिब्बत भूख और थकावट उनकी इस अभिलाषा की पूर्ति में सहायक होती है । आखिर तिब्बत के इस अनोखे आकर्षण का कारण क्या है ? इसमें कोई सन्देह नहीं कि बहुत पुराने समय से ही जादूगरों और मायावी तान्त्रिक ने तिब्बत देश को अपना घर बना रक्खा है और प्रतिदिन यहाँ तिलस्माती घटनाएँ घटती रहती हैं । प्रकृति ने इनके चारों ओर कठोर, शुष्क वातावरण उपस्थित करके इन्हें अन्य उच्च आकांक्षाओं से वश्चित कर रक्खा है। इसी से मालूम होता है, इन्होंने अपनी सारी शक्ति एक दूसरे ही प्रकार की मायापुरी के निर्माण करने में लगा रखना ही ठीक समझा है । सब कहीं से निराश होकर ये स्वर्ग के उद्यानों में अपनी-अपनी पसन्द के नये फूलों के लगाने, हवाई महलों के बनाते और गिराते रहने में ही अपने दिन काट देते हैं । तिब्बत जैसे देश में वामकी देवी के इन उपासकों के लिए सुविधाएँ भी अनेक हैं। सच पूछिए तो यहाँ की पहाड़ी घाटियाँ, रेतीले मैदान और अन्धकार - पूर्ण गुफाएँ इस देश के निवासियों के कल्पित देवलोक और मायापुरी से अधिक ही दुर्बोध और विस्मयकारी हैं । किसी की लेखनी में वह जादू नहीं है कि वह तिब्बता प्राकृतिक दृश्यों की शानदार खूबसूरती, मनमोहिनी छटा, शान्तिपूर्ण निःस्तब्धता और इतना गहरा असर डालनेवाले आकर्षण का सच्चा खाका खींचने में कामयाब हो सके। यहाँ की सुनसान घाटियों को पार करते हुए अकेले यात्री को ऐसा लगता है कि वह विदेशी व्यक्ति है और उसे इस अज्ञात देश की सीमा के भीतर पैर रखने का कोई अधिकार नहीं है। एकाएक उसके पाँव अपने आप रुक जाते हैं और वह अपनी आवाज नीची करके शङ्कित नेत्रों से इधर-उधर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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