Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 165
________________ उपसंहार १६५ सबसे पहले लामा को नियमित रूप से समुचित खाद्य-पदार्थों से अपने आपको शुद्ध कर लेना होता है, फिर जिस वस्तु में उसे शक्ति भरनी है उसी में वह अपने समस्त विचारों को केन्द्रीभूत करता है। कभी-कभी इस काम में उसे महीनों लग जाते हैं और कभी-कभी जब काराज या पत्त े पर कोई क्यिल- क्होर खींचना होता है तो पलक मारते यह काम होता है। २- किसी वस्तु में शक्ति भरकर उसमें - समझ लीजिएएक तरह की जान डाल देते हैं । उस बेजान चीज़ में एक तरह की गति करने की शक्ति आ जाती है और वह जान डालनेवाले के आज्ञानुसार काम कर सकती है। इन शक्तियों का उपयोग गास्पा लोग तभी करते हैं जब उनका विचार किसी अभागे की जान ले लेने का होता है । उदाहरण के लिए एक छुरे को ले लीजिए । छुरे में यह जान फूँक करके उसे जिस आदमी की हत्या करनी होती है उसके सोने के बिस्तर के सिरहाने रख देते हैं। वह आदमी उस छूरे को वहाँ देखकर अचम्भे में आ जाता है । उसे हाथ में लेकर उसकी परीक्षा करता है । छरे में जो 'शक्ति की लहरें भरी गई हैं उनसे प्रभावित होकर वह व्यक्ति स्वयं छरे से अपनी आत्महत्या कर लेता है और गास्पा का अभिप्राय सहज ही में सिद्ध हो जाता है । 9 ३ - कभी-कभी किसी वस्तु की सहायता के बिना ही शक्ति का प्रसार किया जाता है । लक्षित स्थान पर पहुँचकर वह अपना असर डालती है । कहा जाता है, इस उपाय से लामा लोग अपने दूर-दूर के शिष्यों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य और साहस इत्यादि से भरने में सफल होते हैं। कुछ जादूगर लोग इस शक्ति का उपयोग एक दूसरे ही ढङ्ग पर करते हैं। शक्ति को वे किसी आदमी के पास भेज देते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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