Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 168
________________ १६८ प्राचीन तिब्बत रास्ते पर चला गया। गाँव में पहुँचकर उसने लोगों से कहा कि उसने झाड़ी में 'कोई चीज़' देखी थी जिसके दो बड़े बड़े कान उसके पास पहुँचने पर खड़े हो गये थे । गाँव के और लोगों ने उस 'चीज' को आकर देखा और धीरे-धीरे प्रसिद्ध कर दिया गया कि उस मैदान की एक झाड़ी में कोई भूत रहता है - जानेवाले बचकर जायँ। लोग उधर से जाते तो उस ओर एक भयपूर्ण दृष्टि डाल लेते और साँस रोके हुए चुपचाप नीचा सिर किये अपना रास्ता पकड़ते । इसके बाद फिर पास से जानेवालों ने साफ़ देखा कि वह 'चाज' हिल रही है। दूसरे दिन उसने काँटों में से अपने को छुड़ा लिया और अन्त में सौदागरों के एक जत्थे के पीछे-पीछे हो लिया । भय से अधमरे बेचारे सौदागरों को पीछे मुड़कर देखने का भी साहस न हुआ। जान बचाने के लिए वे लोग सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए। टोपी में इतने आदमियों के विचारों के केन्द्रित हो जाने से एक प्रकार की जान आ गई थी । यह कहानी, जिसे तिब्बती सच्ची घटना बतलाते हैं, केन्द्रीभूत विचारों की शक्ति और उन अलौकिक घटनाओं की, जिनमें कर्त्ता के लक्ष्य में कोई निश्चित उद्देश्य नहीं रहता, एक अच्छी मिसाल है। दूसरी कहानी एक मरे हुए कुत्त े के दाँत के बारे में है जो तिब्बत भर में इतनी प्रसिद्ध हुई कि उसे लेकर एक मसल हो बन गईमॉस गुस याद ना क्यो सो द त । अर्थात् अगर विश्वास की भावना है तो कुत्ते के दाँत से भी रोशनी पैदा हो सकती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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