Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 167
________________ उपसंहार १६७ ९९ प्रतिशत पौराणिक उपाख्यानों से सम्बन्ध रखती हैं-हमें ऐसा हो मालूम पड़ता है। लेकिन जब-तब एकाध अलौकिक घटनाएं सचमुच होती रहती हैं और कुछ ऐसे आश्चर्यजनक व्यापार हमारे देखने में आते हैं कि हमें उन पर अविश्वास करने का साहस नहीं होता। ___पश्चिम के जो यात्री एक बार तिब्बती सीमा तक पहुँच चुके हैं और उन्होंने यहाँ के साधारण लोगों के अन्धविश्वास और धर्मपरायणता के बारे में अपनी कोई निजी धारणा बना ली है वे, मेरा विचार है, नीचे दी हुई दोनों कहानियों को पढ़कर बड़ा अचम्भा मानेंगे कि तिब्बत जैसे धार्मिक और सीधे-सादे देश के निवासी भी ऐसे युक्तिसङ्गत और बुद्धि को चकरा देनेवाले सिद्धान्तों में विश्वास करते हैं। ___ एक बार को बात है, एक सौदागर अपने काफिले के साथ एक मैदान को पार कर रहा था। हवा तेज़ थी जो उसके सिर पर से उसकी टोपी उड़ा ले गई। इन लोगों में ऐसा विश्वास है कि अगर सिर पर से टोपी गिर पड़े तो उसके उठाने में बड़ा अपशकुन होता है। अस्तु, उस सौदागर ने उस टोपी को वहीं वैसे हो छोड़ दिया। टोपी वहाँ से उड़कर एक झाड़ी में जा पहुँची और काँटों में उलझकर वहीं रुक गई। कर लगी हुई वह बेशकीमत बढ़िया टोपी उसी झाड़ी में महीनों उलझी रहकर धूप और पानी सहते सहते अजीब सूरत की बन गई। यहाँ तक कि देखनेवाले उसे पहचान भी न सकते थे। कुछ दिनों के बाद एक मुसाफिर उधर से निकला और उसने झाड़ी में भूरे रङ्ग की कोई चीज़ देखी। डरपोक और कमजोर दिल का होने के सबब से वह नीची आँखें किये हुए चुपचाप अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, 18wiwatumaragyanbhandar.com

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