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उपसंहार
ऋषियों और योगियों के इस बृहद् भूभाग ने आसपास के देशवासियों का ध्यान आज ही नहीं, सदियों से अपनी ओर आकृष्ट कर रक्खा है। गौतम बुद्ध के समय के बहुत पहले से ही भारतवासियों को हिमालय की ऊँची चोटियाँ पूत-भावनाओं से प्रेरित करती रही हैं। और आज भी उस समय की अनेक प्रचलित कहानियाँ विशाल तुषार-धवल गिरिराज के पीछे छिपे हुए कौतूहल-पूर्ण मेघाच्छादित परीदेश के बारे में भारतीय साहित्य में मिलती हैं। ___ चीन-निवासी भी तिब्बती मरुस्थल की विचित्रता से प्रभावित मालूम होते हैं। उनके सुप्रसिद्ध दार्शनिक ( दानिशमन्द ) ला
ओत्न के बारे में कहा जाता है कि वे अपने बुढ़ापे में बैल पर सवार होकर इसी ओर कहीं आये थे। उन्होंने तिब्बत की सीमा को पार किया था और फिर वे वापस नहीं लौटे थे। ऐसी ही दन्तकथा बोधिधर्म और उनके कुछ चीनी शिष्यों ( त्सान साम्प्रदायिकों) के बारे में प्रसिद्ध है। ___ आज के जमाने में भी बहुत से भारतीय यात्री कन्धों पर भारी-भारी बोझ लादे हुए तिब्बत में घसने के लिए ऊंचे भयानक पहाड़ी रास्तों पर चढ़ते हुए देखने में आते हैं; जैसे खाये हुए से—किसी जादू के प्रभाव से-उधर खिंचते चले जा रहे हों। जब उनसे उस यात्रा का अभिप्राय पूछा जाता है तो वे यही उत्तर देते हैं कि और कुछ नहीं, उनको अन्तिम इच्छा तिब्बत देश में जाकर मरने की है। बहुधा वहाँ की शीतल वायु, ऊँचा धरातल,
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