________________
अध्यात्म की शिक्षा
१५५ प्रकार के फूल हैं, जिस-जिस रङ्ग की उनकी पंखुड़ियाँ हैं, जहाँ-जहाँ जो-जो पौधे लगे हैं, हर एक डाल, हर एक पेड़ और फुलवाड़ी को, प्रत्येक वस्तु को, वह प्रत्यक्ष अपने सामने लाने का प्रयत्न करता है।
और जब पूरा-पूरा दृश्य उसके नेत्रों के सामने आ जाता है तब वह धीरे-धीरे एक-एक करके सब पदार्थों को कम करता जाता है।
थोड़ी देर के बाद फूलों का रङ्ग फीका पड़ने लगता है; और धोरे-धीरे उनका आकार छोटा होता जाता है। अब वे बिलकुल नन्हें से होकर धूल में परिणत हो जाते हैं और तब यह धूल भी आँखों से ओझल हो जाती है। ___ कुछ देर बाद सिफ़ ज़मीन रह जाती है। और अब इस जमीन में से भी ईटों के टुकड़े और मिट्टी के ढेले गायब होने शुरू होते हैं। यहाँ तक कि अन्त में उद्यान और वहाँ की सारी भूमि भी लुप्त हो जाती है। ___कहते हैं, इस प्रकार के अभ्यासों से साधक लोग अपने मस्तिष्क से सब प्रकार की वस्तुओं के स्थूल आकार और सूक्ष्म पदार्थों के विचारों को दूर ही रखने में सफलता प्राप्त करते हैं। ___ कुछ साधक और कुछ नहीं तो आकाश ही पर ध्यान जमाते हैं। आकाश की ओर ऊपर मुंह करके ये लोग भूमि पर चित्त लेट जाते हैं और शून्य आकाश में किसी एक स्थान पर एकटक होकर दृष्टि गड़ाये रखते हैं। इस प्रकार के ध्यान और उनसे जो विचार मस्तिष्क में आते हैं उनसे, कहा जाता है कि, साधक एक विचित्र प्रकार की समाधि की अवस्था में पहुँच जाता है जिसमें वह अपने आपको एकदम भुलाकर स्वयं विश्वमय होने का अद्भुत अनुभव करता है। ___ मालूम होता है कि तिब्बतवासी विशेषकर दोगछेन सम्प्रदाय के लोग भारतीय योगशास्त्र के सिद्धान्तों की भी थोड़ी-बहुत
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com