Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 153
________________ अध्यात्म की शिक्षा १५३ युवक तुरन्त उल्टे पाँव वापस लौटा और उसने अपनी छोटी aarai में बैठकर याक को ध्यान में देखना आरम्भ किया | कुछ दिनों के बाद गुरु लामा अपने नये शिष्य के पास गये और उन्होंने बाहर से उसका नाम लेकर पुकारा । "जी, आया", और तत्काल युवक अपना आसन त्यागकर उठ बैठा; "लेकिन गुरुजी बाहर आऊँ कैसे ? इस दरवाज़ े मेरे तो सींग उलझ जायेंगे ।" बात यह थी कि उसने चित्त को एकाग्र करके ध्यान लगाया था। अपने को भी इस काम में वह एकदम भूल बैठा था । उसे तो बस एक धुन थी, एक ख़याल था और जल्दी में वह अपने को ही सींगदार जानवर समझ बैठा था । तिब्बती लोग धर्म-विषयक सभी बातों को बड़े सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। पर मालूम होता है, उनके स्वभाव में हास्यप्रियता का अंश यथेष्ट मात्रा में मिला हुआ है । नीचे की कहानी मुझे गाग के एक नालजोर्पा ने बतलाई थीएक गुरुभक्त शिष्य कई वर्ष अपने गुरु लामा के पास अध्ययन में बिताकर अपने घर को वापस लौट रहा था। रास्ते में उसने समय का समुचित उपयोग करने के लिए ध्यान करना शुरू किया। चलते रहने के साथ ही उसने तिब्बती शिष्टाचार के अनुसार यह कल्पना की कि उसके गुरु लामा उसके सर पर बैठे हुए हैं । थोड़ी देर के बाद वह किसी चीज़ से ठोकर खाकर बिलकुल औंधे मुँह गिर पड़ा। लेकिन वह इतने गहरे ध्यान में डूबा हुआ था कि उसकी विचार-शृंखला तनिक भी न टूटी। वह शीघ्र ही क्षमा माँगता हुआ उठ खड़ा हुआ - "रिम्पोछे, क्षमा कीजिए । मुझसे चूक हुई। मैंने अनजान में यह अपराध क्रिया । आप कैसे गिर गये ? किधर गये ? आपके चोट तो नहीं...... आदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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