Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 152
________________ १५२ प्राचीन तिब्बत लगभग सभी बौद्ध देशों में मन की एकाग्रता पर बहुत काफी जोर दिया गया है। लंका, स्याम और बर्मा में तो इसके लिए एक प्रकार का यन्त्र, जिसे 'काशिनस' कहते हैं, प्रयोग में लाया जाता है। ये यन्त्र और कुछ नहीं, रंग-बिरंगी मिट्टो की बनी हुई रिकाबियाँ रहती हैं या पानी से भरा हुआ कोई गोलाकार छोटा सा बर्तन । कभी-कभी काशिनस प्रज्वलित अमि ही होती है जिसके आगे गोल सूरान किया हुआ एक काला सा पर्दा होता है। इनमें से कोई एक वृत्त चुन लिया जाता है और उसी पर बराबर दृष्टि गड़ाकर देखते हैं। देखते रहने के साथ ही बीच-बीच में आँखें मूंद ली जाती हैं और जब नेत्र बन्द कर लेने पर भी वैसा ही वृत्त आँखों के सामने बना रहे तो समझ लेना चाहिए कि सफलता मिल रही है। तिब्बती लोगों का कहना है कि सामने रखकर देखने के लिए कोई भी पदार्थ चुना जा सकता है। जो वस्तु किसी के ध्यान और विचारों को आकर्षित कर सके, वही ठीक समझो जानी चाहिए। ___ इस सम्बन्ध की एक कहानी तिब्बती धार्मिक जनता में इतनी अधिक प्रचलित है कि शायद ही किसी के कान में पड़ने से बची हो___एक अधेड़ उम्र के युवक ने किसी संन्यासी से शिष्य बना लेने को प्रार्थना की। गुरु लामा ने पहले उसे अपने चित्त को एकाग्र करने का आदेश दिया। उन्होंने पूछा-"तुम बहुधा कौन सा काम करते हो ?" युवक ने उत्तर दिया-"प्रायः मैं पहाड़ियों पर याक चराया करता हूँ।" "बहुत अच्छा ।" संन्यासी ने कहा-"तुम याक का ही ध्यान में देखो।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, wwwnatumaragyanbhandar.com

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