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अध्यात्म की शिक्षा
१५१ बड़े मन्त्रों में से जो सबसे अधिक प्रचलित है, वह शुद्ध तिब्बती भाषा में है। उसमें संस्कृत का कोई शब्द नहीं है। इस मन्त्र का नाम 'क्याबदो' है और इसका जाप शुरू-शुरू में एक लाख बार करने का विधान किया गया है। इसके साथ-साथ इतने ही बार दण्ड-प्रणाम करने का आदेश है।
तिब्बती लोग श्रद्धा प्रकट करने के लिए प्रणाम दो प्रकार से करते हैं। पहला ढंग तो चीनी तरीक 'कोवोतोवो' से मिलताजुलता है और दूसरा है भारतीय प्रथा के अनुसार साष्टांग प्रणाम जिसे ये लोग 'म्याचग' कहते हैं। धार्मिक अवसरों पर यही पिछला प्रकार व्यवहार में आता है।
इन मन्त्रों का जाप करने के अतिरिक्त लामा संन्यासी प्राणायाम और योगशास्त्र से सम्बन्ध रखनेवाली बहुत सी क्रियाएं अपने साम-वास की अवधि में सीखते हैं। बहुत से क्यिल-क्होर खींचने का भी अभ्यास होता है। इनका सीखना जरूरी होता है; क्योंकि लगभग सभी प्रकार के तान्त्रिक उपचारों में इनका काम पड़ता है।
क्यिल-कहोर काग़ज़ या कपड़े पर बनी हुई या पत्थर, धातु अथवा लकड़ी पर खुदी हुई शकलें हैं । कुछ शकलें छोटी-छोटी पताकाओं, देवस्थान के दियों और अन्न, जल आदि से भरे हुए पात्रों से भी बनाई जाती हैं। एकाध मन्दिर में मैंने सात-सात फुट के दायरे में बने क्यिल-वहार देखे हैं। यद्यपि 'क्यिल-कहोर' का अर्थ 'वृत्त' होता है, लेकिन बहुत सी शकलें चौकोर भी होती हैं। वे रियल-कहोर जिनका उपयोग जादूगर लोग किसी देवता या दानव को वश में लाने के लिए करते हैं, साधारण रीति से त्रिकोण होते हैं। ___ इन अभ्यासों के अतिरिक्त मस्तिष्क को एक ही ओर आकृष्ट रखने के लिए और चित्त को एकाग्र करने के लिए भी यथेष्ट परिश्रम किया जाता है।
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