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इच्छा-शक्ति और उसका प्रयोग बड़ा था जितना कि आकाश और उसकी लपलपाती. हुई जीभ खुले हुए मुंह से बाहर लटक रही थी। जादूगर ने बतलाया कि शिन्जे उसके काबू में आ गया है, लेकिन उससे पक्का वादा लने के लिए किसो एक लामा का अपने प्राणों का मोह त्याग करके उसको भंट चढ़ना आवश्यक था। यह सुनकर
और लोग तो चुपके से वहाँ से नौ दो ग्यारह हुए लेकिन बुस्तां ने कहा कि अगर उसकी अपनी एक जान जाने से असंख्य जीवों को प्राण-रक्षा होती हो तो वह खुशी-खुशी शिन्जे की भट चढ़ जायगा।
परन्तु उसके मित्र ने जवाब दिया कि उसकी अपनी विद्या में ही इतना बल था कि वह बगैर अपने दोस्त की जान लिये हुए शिन्जे का पेट भर सके। लेकिन हाँ, बुस्तों और उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों को हर बारहवें साल इस अनुष्ठान को विधिवत् पूरा करने का जिम्मा लेना होगा। बुस्तों ने स्वीकार कर लिया और यङ्गतोन दोर्जपाल ने बहुत सी जादू को बत्तखें बनाकर उन्हें शिन्जे के खुले मुख में झांककर उसे बन्द कर दिया। तभी से बुस्तों के बाद बराबर आज तक शालू गुम्बा के अवतारी लामा हर बारहवें साल शिन्जे को प्रसन्न रखने के लिए इस पूजा को करते चले श्रा रहे हैं। पर मालूम होता है जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसेवैसे शिन्जे के साथियों को संख्या भी बढ़ती चलो गई; क्योंकि अब तो शाल लामा उक्त अवसर पर बहुत से दानवों को आमन्त्रित करते हैं। ___ इन दानवों को एक जगह पर इकट्ठा करने के लिए एक तेज हरकारे को जरूरत पड़ती है। यह हरकारा 'महेकेताह' कहलाता है। मालूम होता है कि शिन्जे को सवारी के भैंसे 'महे' से यह नाम पड़ा है।
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