Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 146
________________ १४६ प्राचीन तिब्बत उसी खिड़की के रास्ते से बातचीत करता है, जिससे होकर उसका भोजन अन्दर आता है। गुरु लामा अपने हाथ से इस कोठरी का ताला बन्द करता है और इस मौक पर तथा बाद में जब वह उसे अपने हाथ से खोलकर शिष्य को बाहर निकालता है तो एक पूजा की जाती है। एकान्तवास अधिक कड़ा न होने की हालत में द्वार पर एक पताका गाड़ दी जाती है और इसमें उन लोगों का नाम लिखा रहता है, जिन्हें साम्सपा से मिलने की आज्ञा उसके गुरु की ओर से होती है। जो लोग जीवन भर के लिए अपने को साम्सखाड़ में बन्द कर लेते हैं उनके दरवाजे पर निशान के लिए एक सूखी टहनी भूमि में ही खोंस दी जाती है। ___ साम खाइ प्रायः गुम्बाओं के आसपास ही ध्यान करने के लिए बने हुए कुटीरों के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इनसे दूर निर्जन स्थानों में बने हुए आश्रम-स्थलों को 'रितोद्' कहते हैं। रितोद् कभी भी पहाड़ियों के तले निम्नप्रदेश में नहीं बनाये जाते। ये हमेशा ऊपर किसी जचनेवाली जगह पर होते हैं। इनकी स्थिति भी निर्धारित नियमों के अनुसार पसन्द को जाती है। एक मशहूर तिब्बती कहावत भी है ग्याब्री ताग दुन री त्सो अर्थात् रितोद् किसी पहाड़ी पर ऐसी ऊँची जगहों पर बनाये जावें जहाँ उनके पीछे पहाड़ी चट्टानें हों और आगे सामने कोई पहाड़ी सोता हो। ___रितोद्-पा (रितोद्वाले ) न तो उतना कठिन जीवन ही व्यतीत करते हैं, जितना त्साम्सपा, और न ये लोग अंधेरे कमरे में बन्द होना ही जरूरी समझते हैं। इस प्रकार के-मनुष्यों की बस्ती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com

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