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प्राचीन तिब्बत
अपने घर की चौखट पर खड़ा था और उसके बगल में एक अधेड़ उम्र का नापा, पीठ पर एक छोटी सी गठरी लिये हुए, खड़ा था जैसे वह अभी-अभी अपनी यात्रा के लिए खाना होने को प्रस्तुत हो । त्रापा ने लामा के पैरों में सिर नवाया और आज्ञा माँगी । लामा ने उसे उठाकर मुसकराते हुए कुछ कहा और तब उत्तर की ओर हाथ से इशारा किया । त्रापा इसी दिशा में घूमा और उसने फिर तीन बार झुक-झुककर प्रणाम किया ।
तब उसने अपने चोरा को सँभाला और चल पड़ा। सिपा ने यह भी देखा कि चौग़ा एक किनारे पर बुरी तरह से फटा हुआ है। इसके बाद ही यह छाया चित्र लुप्त हो गया ।
कुछ सप्ताह के बाद यही यात्री ग्युद लामा के पास से सचमुच ही आया और सिपा लामा से गणित ज्योतिष के कुछ अंगों की शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की ।
त्रापा ने बतलाया कि अपने पिछले गुरु से बिदा होते समय उसने जब उसे प्रणाम किया तो ग्युद लामा ने हँसते हुए जो बात कही थी वह यह थी - "तुम अब अपने नये गुरु के पास जा रहे हो। उसे भी इसी समय प्रणाम कर लेना तुम्हारा कर्त्तव्य है ।" फिर उसने उत्तर की ओर हाथ उठाकर बताया था कि इसी दिशा में सिपा लामा का घर पड़ता है ।
लामा को अपने नये शिष्य के लबादे में वह फटा हुआ हिस्सा भी दिखलाई पड़ा जिस पर उसकी निगाह पहले ही छाया चित्र में पड़ चुकी थी ।
अन्त में अपने कुछ निजी अनुभवों के बारे में मैं कह सकती हूँ कि मैंने स्वयं काफी समय इस टेलीपेथिक विज्ञान को सीखने में नष्ट किया था और कई बार अपने गुरु लामाओं के मानसिक देश समझ सकने में सफल भी हुई थी।
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