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प्राचीन तिब्बत
अपने छोटे क़ाफिले के साथ सफर कर रहे थे। कुछ दिन चलत रहने के बाद एक रजोपा भी अपनी छोटी गठरी लेकर हमारे साथ हो लिया था । ये लोग गरीब यात्री होते हैं जो माँगते-खाते चल पड़ते हैं और रास्ते में अगर किसी क़ाफ़िले का साथ हो गया तो उसी में शामिल हो जाते हैं। मौक़-बेमौक े ये नौकरों के काम में हाथ बँटा लेते हैं जिससे नौकर-चाकर भी खुश हो जाते हैं और मालिक की भी चापलूसी हो जाती है। लोग इनकी हालत पर तरस खाकर इन्हें भी कुछ न कुछ खाने के लिए दे देते हैं । हजारों रोपा इसी प्रकार तिब्बत के व्यापारिक मार्गों पर क़ाफ़िलों के साथ लगे हुए देखे जाते हैं। भी अपने इस नये साथी की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। इस बात का पता हमें जरूर चला कि वह खाम की पावोंङ गुम्बा में रहता था और त्सांग प्रान्त को जा रहा था । रास्ता काफी लम्बा था और हम सोचते थे कि इस तरह से माँगता-खाता हुआ पैदल चलकर तो वह अपने गन्तव्य स्थान तक तीन-चार महोने में भी नहीं पहुँच सकेगा ।
हमने
जिस दिन यह रजोपा हमारे काफ़िले में आ मिला उसके तीसरे रोज़ मैं और एक नौकर बाक़ी लोगों का साथ छोड़कर कुछ आगे बढ़ गये थे । अपने खाने-पीने के लिए कुछ सामान भी हमारे साथ ही था । हम लोग शाम को एक जगह पर रुककर और लोगों के आ जाने की प्रतीक्षा करने लगे। चाय पी और गोश्त पकाने के लिए कण्डे बटोरने लगे । एकाएक मैंने उसी
रजोपा को कुछ दूर पर तेजी के साथ अपना ओर आते देखा । उसके और पास आ जाने पर मैंने साफ़-साफ़ देखा कि वह उसी विचित्र प्रकार से कूदता हुआ आगे बढ़ रहा है जिस तरह से मैंने बग्याई के लामा लड्- गोम्पा को जाते हुए देखा था ।
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