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पुराने धर्म-गुरु और उनकी शिष्य-परम्परा लिए तैयार बैठा है। अचम्भ में आकर उसने अपने गुम से इसका प्रयोजन पूछा। योगी हँसा।
अछा यह ता बतलाया", उसने पूछा-'कि क्या तुम मेरो सन्नता के लिए थोड़ा-बहुत कष्ट भी सहन कर सकते हो ?'
नरोपा ने उत्तर दिया, "गुरुवर, मेरा यह नश्वर शरीर आपका है। आप इसका जैसा चाहिए. वैसा उपयोग कीजिए । ।
तिलोपा न एक-एक करकं नरोपा के बोला ना खूनों में बीस सूये ठोक दिये और कहा, "मेरा प्रतीक्षा करना. मैं अभी आता है।” इतना कहकर बाहर से दरवाजा बन्द करक गुरु चला गया
और चेला उसी के भीतर बन्द बैठा रहा । ___ कई दिन बोत गये । और कई दिन बिता चुकने के बाद तिलापा जब वापस लौटा तो उसने उसी तरह नरोपा का सूर्य गड़ाये हुए जमान पर बैठे देखा।
"तुम अब तक अकेले बैठे क्या सोच रहे थे ? बताओ, क्या अब भी तुम्हारी समझ में यह बात नहीं आई कि मुझ जैसे कठोरहृदय, निदय व्यक्ति का साथ छोड़ने में ही तुम्हारी भलाई है ?" ___ "मैं अब तक यहो साचता रहा कि अगर आपको दया मेरे ऊपर न हो सको तो फिर 'सुगम-मार्ग' के सिद्धान्ता का मुझे
और कोई नहीं समझा सकेगा। इनको जाने बिना जो-जो यन्त्ररणाएँ नरक में मुझे भुगतनी पड़ेगी. उन्हीं के बारे में मैं साचता रहा था।" बेचारे नरोपा ने जवाब दिया। ____ इस तरह कई वर्ष बीत गये, और इसी बीच में कभी नरापा को छत पर से नीचे कूदना पड़ा और कभी आग में से होकर निकलना पड़ा। इस प्रकार के तरह-तरह के जोखिम के काम वह अपने गुरु को प्रसन्न रखने के लिए करता रहा। वह गुरु की काई
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